नाड़ी दर्शन हिंदी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Nadi Darshan Hindi Book
इस पुस्तक का नाम है : नाड़ी दर्शन | इस पुस्तक के लेखक हैं : श्री ताराशंकर मिश्र | पुस्तक का प्रकाशन किया है : अज्ञात | इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 31 MB हैं | पुस्तक में कुल 221 पृष्ठ हैं |
Name of the book is : Nadi Darshan. This book is written by : Shri Tarashankar Mishra. The book is published by : Unknown. Approximate size of the PDF file of this book is 31 MB. This book has a total of 221 pages.
पुस्तक के लेखक | पुस्तक की श्रेणी | पुस्तक का साइज | कुल पृष्ठ |
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श्री ताराशंकर मिश्र | चिकित्सा,स्वास्थ्य | 31 MB | 221 |
पुस्तक से :
आज के युग में रोग एवं रोगि-परीक्षा के अनेक साधन उपलब्ध हैं। एक्स-रे, स्टेथिस्कोप, स्फिग्मो-मोनोमीटर, थर्मामीटर, अणुवीक्षण यन्त्र एवं अपथल्मस्कोप आदि आधुनिक चिकित्सकों में बहुत ही प्रचलित हैं। मल, मूत्र, रक्त और कफ परीक्षा के लिये अलग-अलग यंत्रों का विकाश हो चुका हैं। आँख, कान, नाक, जीभा, गुदा, आदि की परीक्षा के लिये भी अनगिनत साधन उपलब्ध हैं। परमाणु सिद्धान्त एवं रेडियम चिकित्सा पद्धति के आधार पर भी कई यन्त्र रोगों का पता लगाना प्रारम्भ कर चुके हैं। इन सबका अपने-अपने स्थान पर एक अलग ही महत्व है। प्रत्येक चिकित्सक को जहाँ तक हो सके इनसे काम लेना ही चाहिये ।
ये यन्त्र सभी के लिए सुलभ नहीं है। युद्ध आदि की परिस्थितियों में ये जवाब दे देंगे। सभी चिकित्सक भी इनका उपयोग नहीं कर सकते। इसलिये कि ये बहुत महँगे हैं। इनके लिये अनगिनत समस्यायों का सामना भी करना पड़ता है। इनकी बातों को जानने के लिये अनगिनत विषयों की जानकारियों की भी आवश्यकता होती है। बड़े से बड़े चिकित्सक भी एक रोग का निदान करने में इनके ऊपर रोगी का सहस्रों रुपया एवं बहुत समय व्यय करा देने के बाद भी रोगनिर्णय में प्रश्न वाचक चिह्न लगा देते है, अन्त में रोगी के पास पछताने के अतिरिक्त कोई चारा नहीं रह जाता है।
आप स्वयं ही बताइये भारत ही नहीं बल्कि अमेरिका, इंग्लैण्ड, रूस, चीन, और जापान आदि किसी भी समृद्ध राष्ट्र के किसी कोने में जहाँ यातायात का कोई साधन नहीं है वहां रोग निर्णय के तथोक्त कोई यन्त्र उपलब्ध नहीं, वहाँ व्याधि से पीड़ित मानवता के कष्ट को पहचानने का नाड़ी के अतिरिक्त कोई और साधन आज के विज्ञान ने दिया है ? उत्तर ! सूर्य के समान स्पष्ट है। कोई नहीं। ऐसी अवस्था में यदि नाड़ीज्ञान का प्रचार हो जाय तो रोगनिर्णय की बहुत बड़ी समस्या का हल निकाला जा सकता है।
(नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)
डाउनलोड लिंक :
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