परलोक के खुलते रहस्य हिन्दी पुस्तक | Parlok ke Khulte Rahasya Hindi Book PDF

 

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परलोक के खुलते रहस्य हिन्दी ग्रन्थ के बारे में अधिक जानकारी | More details about Parlok ke Khulte Rahasya Hindi Book

इस ग्रन्थ का नाम है : परलोक के खुलते रहस्य | इस पुस्तक के लेखक हैं : अरुण कुमार शर्मा. इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : आस्था प्रकाशन, वाराणसी. इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 175 MB हैं | इस पुस्तक में कुल 426 पृष्ठ हैं |

Name of the book is: Parlok ke Khulte Rahasya | This book is written by : Kautilya. This book is published by : Aastha Prakashan, Varanasi. Approximate size of the PDF file of this book is: 175 MB. This book has a total of 426 pages.

पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
अरुण कुमार शर्मायोग, मनोविज्ञान, तंत्रमंत्र175 MB426


पुस्तक से :

यह जगत स्वयं अपने आप में प्राकृतिक घटना है और हमारा जीवन उस घटना का विस्तार है। उस विस्तार में कभी-कभी ऐसी घटनाएं घटती है जो अपने आपमें अविश्वसनीय और चमत्कारपूर्ण लगती हैं। जिनपर सहसा विश्वास नहीं होता लेकिन प्राकृतिक नियमके विरूद्ध जगतमें कुछ भी असामान्य नहीं होता। जो भी घटनायें अथवा चमत्कार देखने को मिलते हैं वह प्रकृतिके नियम के अन्तर्गत होते हैं।

 

पशु क्यों? आज का मनुष्य अपने आपमें सर्वाधिक बेचैन है। पशु बेचैन नहीं होता, पशु आत्महत्या नहीं करता। जिस दिन पशु आत्मघात कर लेगा समझ लेना चाहिए कि वह पशु अधिक समय तक पशु नहीं रहेगा, मनुष्य बनना शुरू कर दिया है उसने. पशु चिन्तित नहीं है और बेचैन भी नहीं है इसलिए पशुके आत्महत्या करने का कोई कारण नहीं है.

 

यदि विचारपूर्वक देखा जाये तो पूरब हो या हो पश्चिम दोनोंकी दशा एक प्रकार से दयनीय ही है। पूरब अपनी अधूरी अधार्मिक धारणा के कारण ही आज भौतिक रूप से दीनहीन हो गया है और पश्चिम अपनी एकांकी दृष्टि के कारण आज हिंसा और ऊब से भर गया है।

 


हमारे शरीर और ज्ञानेन्द्रियोंकी अपनी एक सीमा है और उन सीमाओं के बाहर कोई कार्य होता है तो हम सहज रूप से उस पर विश्वास नहीं कर पाते। जिसे हम रहस्य या अंधविश्वास कहकर टाल देते हैं। लेकिन फिर भी हमारी आत्माके किसी कोने से आवाज बराबर उठती रहती है और कहती रहती है कहीं न कहीं सत्य है उसे पूर्णरूपसे नकार नहीं सकते।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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