इस पुस्तक का नाम है : पातंजल योग दर्शन | इस पुस्तक के लेखक हैं : महर्षि पतंजलि | पुस्तक का प्रकाशन किया है : अज्ञात | इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 48 MB हैं | पुस्तक में कुल 502 पृष्ठ हैं |
Name of the book is : Patanjal Yog Darshan. This book is written by : Maharshi Patanjali. The book is published by : Unknown. Approximate size of the PDF file of this book is 48 MB. This book has a total of 502 pages.
पुस्तक के लेखक | पुस्तक की श्रेणी | पुस्तक का साइज | कुल पृष्ठ |
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महर्षि पतंजलि | योग,भक्ति,धर्म | 48 MB | 502 |
पुस्तक से :
वास्तव में आत्मतत्त्व सर्वथा शुद्ध, निर्विकार, कूटस्थ, असङ्ग है यद्धपि इसका सम्बन्ध प्रकृति के साथ अनादिसिद्ध अविद्या से माना जाता रहा है। जब तक उस अविद्या के नाश से यह प्रकृति से अलग होकर अपने असली स्वरूप में स्थित नहीं हो जाता है तब तक बुद्धि के साथ एकता को प्राप्त हुआ-सा बुद्धि की वृत्तियोंको देखता रहता है और जबतक उनको देखता है।
वर्तमान जन्म के पहले जो अनेक योनियों में दुःख भोग चुके है, वे तो अपने-आप समाप्त हो गये, उनके बारे में कोई विचार नहीं करना चाहिए । तथा जो वर्तमान हैं उसमे भी दुख भोग कर दूसरे क्षण में अपने-आप लुप्त हो जायेंगे, उनके लिये भी उपाय की आवश्यकता नहीं है। परन्तु अभी तक जो प्राप्त नहीं हुए हैं, भविष्य में होनेवाले हैं, उसका चिंतन आवश्यक है।
सभी प्रकार के भोगरूप सुख विनाशशील हैं, उनसे वियोग होना कदाचित निश्चित है, इसीलिए भोगकाल में उनके विनाशकी सम्भावना से भयके कारण ताप दुःख बना रहता है। इसी तरह मनुष्य को जो सुखकारक भोग प्राप्त होते हैं वे सातिशय ही होते हैं।
(नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)
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