प्राकृतिक चिकित्सा हिन्दी पुस्तक | Prakritik Chikitsa Hindi Book PDF

                                         

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प्राकृतिक चिकित्सा हिंदी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Prakritik Chikitsa Hindi Book

इस पुस्तक का नाम है : प्राकृतिक चिकित्सा | इस पुस्तक के लेखक हैं : रामनारायण शर्मा |  पुस्तक का प्रकाशन किया है : हिंदी ग्रंथ रत्नाकर कार्यालय, मुंबई | इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 3 MB हैं | पुस्तक में कुल 80 पृष्ठ हैं |

Name of the book is : Prakritik Chikitsa. This book is written by : Ramnarayan Sharma. The book is published by : Hindi Granth Ratnakar Karyalay, Mumbai. Approximate size of the PDF file of this book is 3 MB. This book has a total of 80 pages.

पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
रामनारायण शर्माआयुर्वेद, स्वास्थ्य3 MB80



पुस्तक से : 

संसार में करोड़ों प्राणी और जीव-जन्तु ऐसे है जो बिना दवा खाये ही अपने रोग नष्ट करते है और अपनी जातिके खाने योग्य भोजन खाकर निरोग रहते है। वे केवल निरोग ही नहीं रहते बल्कि अपने शरीरमें उत्तम बल और शक्ति भी पैदा कर लेते है । इस लिए अपनेको बुद्धिमान समझनेवाला और सृष्टि के सब प्राणियों से अपने को श्रेष्ठ माननेवाला मनुष्य यदि जन्म से यही समझता है कि ओषधियोंके खाये बिना रोग मिटते ही नहीं, तथा गोलियाँ, पाक या तॉबा आदि धातुओं की भस्म खाये बिना शरीर में शक्ति बढती ही नहीं, तो यह बड़े ही खेद का विषय है । मृत्युपर्यन्त मनुष्य इसी भ्रममें पड़ा रहता है ।  

 

अधिकांश व्यक्तियों की यही दृढ धारणा है कि ओषधि खाये बिना रोग दूर ही नहीं होते। मंदाग्नि से, भारी परिश्रम से, चिता से, दुराचारसे अथवा ऐसे ही अन्य किसी कारण से जिन लोगों का शरीर निर्बल और क्षीण हो गया है वे यही समझ लेते है कि कोई बल बढाने वाली दवा खाये बिना ताकत नहीं आनेकी । लोगोंके मनमें दृढता के साथ समाये हुए इस विचार के परिणाम में प्रतिदिन हजारों और लाखों नई नई दवाइयाँ निकलती रहती हैं । सवेरा हुआ नहीं कि एक न एक नई दवाका विज्ञापन हाथ में आ ही जाता है । समाचारपत्र हाथ में लीजिए तो आगे पीछे और बीच में दवाओंके विज्ञापन दृष्टिके सामने आ ही जाते है । घर में से बाहर निकलिए तो दरवाजे पर अथवा गलीमें मकानोंकी दीवारों पर मोटे मोटे अक्षरों में छपे हुए दवाओंके नोटिसों पर नजर पड़ ही जाती है ।

 

 

हम यह बात जानते है कि इतनी अधिक रामबाण दवाओंके निकलते हुए भी, मुहल्ले-मुहल्ले तथा गली-गली में डाक्टरों और वैद्योंके रोगोंको मार भगाने के लिए तैयार बैठे रहने पर भी, और लोगोंके प्रत्येक वर्ष अपनी शक्ति के अनुसार सैकडों तथा हजारों रुपया खर्च करते रहने पर भी दिन-दिन रोगोंका त्रास बढता ही जाता है। रोगों के अधिक वृद्धि पाने के कारण लोगों के शरीर निर्बल होते जाते है, शारीरिक शक्तियॉ क्षीण होती जाती है, और देशमें निरंतर प्लेग, हेजा जैसी व्याधिओं का प्रकोप बने रहने के कारण हजारों तथा लाखों नर-नारी अकाल में ही कालके ग्रास होते जाते है ।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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