पृथ्वीराज रासो - हजारी प्रसाद द्विवेदी हिन्दी पुस्तक | Prithvi Raj Raso Hindi Book PDF

                                     

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पृथ्वीराज रासो हिंदी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Prithvi Raj Raso Hindi Book

इस पुस्तक का नाम है : पृथ्वीराज रासो | इस पुस्तक के लेखक हैं : हजारी प्रसाद द्विवेदी |  पुस्तक का प्रकाशन किया है : अज्ञात | इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 7 MB हैं | पुस्तक में कुल 241 पृष्ठ हैं |

Name of the book is : Prithvi Raj Raso. This book is written by : Hazari Prasad Dwivedi. The book is published by : Unknown . Approximate size of the PDF file of this book is 7 MB. This book has a total of 241 pages.

पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
हजारी प्रसाद द्विवेदीइतिहास,साहित्य,काव्य7 MB241



पुस्तक से : 

'पृथ्वीराज रासो' हिंदी साहित्य का अत्यन्त महत्वपूर्ण ग्रंथ है। इसके संबंधमें विद्वानों ने अनेक प्रकारके मत प्रकट किए हैं। कुछ लोग इसे एकदम प्रामाणिक रचना मानते हैं और कुछ दूसरे लोग पूर्ण रूपसे तो नहीं पर श्रांशिक रूप से इसे प्रामाणिक ग्रंथ मानते हैं। इस विचार के लोगोंका विश्वास है कि चंद नाम का कोई कवि सचमुच ही पृथ्वीराज के काल में उत्पन्न हुआ था और उसने सचमुच ही कोई काव्य लिखा था जो अब प्रक्षेपों से स्फीत और विकृत हो गया है। प्रामाणिकता और अप्रामाणिकता का विवाद प्रधान रूपसे इस प्रश्न पर केंद्रित है कि सचमुच ही पृथ्वीराज का समकालीन कोई चंद नामक कवि था भी या नहीं। पृथ्वीराज रासो की घटनाओंको ऐतिहासिक दृष्टि से देखनेवालों ने प्रायः निश्चित रूप से ही कह दिया है कि यह बात संभव नहीं दिखती।

 

यह विश्वास किया जाता है कि चन्द पृथ्वीराज का मित्र, कवि और सलाहकार था। रासो में वह तीनों रूपोंमें चित्रित है । इस ग्रंथ के अनुसार दोनों के जन्म और मरण की तिथि भी एक है। इस प्रकार सदा साथ रहनेवाले अभिन्न मित्रकी रचना निश्चय ही बहुत प्रामाणिक होनी चाहिए । यही सोचकर सुप्रसिद्ध विद्वत्सभा रायल एशियाटिक सोसायटी ऑफ बंगाल ने इस ग्रंथका प्रकाशन प्रारंभ किया था । कुछ थोड़ा-सा अंश प्रकाशित भी हो चुका था किंतु इसी समय डा० बूलर को पृथ्वीराज विजय की एक खंडित प्रति हाथ लगी |

 

 

बाद में क्रमशः इतिहास का अंश कम होता गया और संभावनाओं का जोर बढ़ता गया । राजाके शत्रु होते हैं, उनसे युद्ध होता है । इतिहास की दृष्टि में एक युद्ध हुआ, और भी तो हो सकते थे । कवि संभावनाको देखेगा । राजाके एकाधिक विवाह होते थे। यह तथ्य अनेकों विवाहों की संभावना उत्पन्न करता है, जल क्रीड़ा, और वन-विहार की संभावना की ओर संकेत करता है और कवि को अपनी कल्पनाके पर खोल देनेका अवसर देता है। उत्तरकाल के ऐतिहासिक काव्यों में इसकी भरमार है । ऐतिहासिक विद्वान् के लिये संगति मिलाना कठिन हो जाता है ।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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