सम्पूर्ण क्रांति (जयप्रकाश नारायण) हिन्दी पुस्तक | Sampurna Kranti Hindi Book PDF

                           

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सम्पूर्ण क्रांति हिंदी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Sampurna Kranti Hindi Book

इस पुस्तक का नाम है: सम्पूर्ण क्रांति | इस पुस्तक के लेखक हैं : जयप्रकाश नारायण | पुस्तक का प्रकाशन किया है : सर्व सेवा संघ प्रकाशन, वाराणसी | इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 55 MB हैं | पुस्तक में कुल 112 पृष्ठ हैं |

Name of the book is : Sampurna Kranti. This book is written by: Jayaprakash Narayan. The book is published by: Sarv Seva Sangh Prakashan,Varanasi. Approximate size of the PDF file of this book is 55 MB. This book has a total of 112 pages.

पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
जयप्रकाश नारायण  इतिहास55 MB112



पुस्तक से : 

आज 27 - 28 के बादका जो स्वराज्य है, उसमें जनता कराह रही है । भूख है, महँगाई है, भ्रष्टाचार है, कोई काम नहीं जनता का निकलता है बगैर रिश्वत दिये। सरकारी दफ्तरोंमें, बैंकोंमें, हर जगह, टिकट लेना है, उसमें, जहाँ भी हो, रिश्वतके बगैर काम नहीं जनता का होता । हर प्रकारके अन्याय के नीचे जनता दब रही है। शिक्षा संस्थाएँ भ्रष्ट हो रही हैं। हजारों नौजवानोंका भविष्य अँधेरे में पड़ा हुआ है । जीवन उनका नष्ट हो रहा है, इस प्रकारकी शिक्षा दी जाती है— गुलामी की शिक्षा, कलम घिसने की शिक्षा । शिक्षा पाकर दर-दर ठोकरें खाना नौकरीके लिए। नौकरियाँ मिलती नहीं । दिन पर-दिन बेरोजगारी बढ़ती जाती है। गरीबकी बेरोजगारी बढ़ती जाती है। 'गरीबी हटाओ' के नारे जरूर लगते हैं, लेकिन गरीबी बढ़ी है पिछले वर्षों में।

 

भारत जैसे कृषिप्रधान देशमें समाजवाद का क्या स्वरूप रहेगा और वह किस प्रकार लाया जायगा? किसी समाजवादी या साम्यवादीके पास उसका नक्शा है? कुल मिलाकर समाजवाद  नाम पर देश के अर्थतंत्रको ही खत्म किया जा रहा है और जो गरीबोंके प्रश्न हैं उन्हें हल नहीं किया गया। न शोषण खत्म हुआ, न असमानता खत्म हुई । न गरीबी खत्म हुई, न महँगाई । ये सब बीमारियाँ बढ़ती जा रही हैं। मैं इसे नकली या भ्रष्ट समाजवाद कहता हूँ । सरकार जो भी धंधा अपने हाथोंमें लेती है उसमें नफा बन्द हो जाता है।

 

 

भ्रष्टाचार की समस्या व्यापक है। समाजका कोई भी अंग नहीं है, जहाँ यह रोग न फैला हो। जनजीवनमें इसका प्रवेश हो गया है, घर-घर में प्रवेश हो गया है। आजकी व्यवस्था हमें मजबूर करती है अपनी आवश्यकताओंकी पूर्ति के लिए भ्रष्टाचार करने को । अपना बच्चा बीमार है और दवा खुले बाजारमें मिलती नहीं और काले बाजार में मिलती है, तो खरीदनी ही पड़ेगी। डॉक्टरने वही दवा बतलायी है। और भी कितने कम्पल्शन्स हैं, कितनी मजबूरियाँ हैं। जनताका काम ही नहीं होता है, अगर रिश्वत न दें।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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