शोध प्रविधि हिंदी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Shodh Pravidhi Hindi Book
इस पुस्तक का नाम है : शोध प्रविधि | इस पुस्तक के लेखक हैं : विनयमोहन शर्मा | पुस्तक का प्रकाशन किया है : नेशनल पब्लिशिंग हाउस, दिल्ली | इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 63 MB हैं | पुस्तक में कुल 228 पृष्ठ हैं |
Name of the book is : Shodh Pravidhi. This book is written by : Vinay Mohan Sharma. The book is published by : National Publishing House, Delhi. Approximate size of the PDF file of this book is 63 MB. This book has a total of 228 pages.
पुस्तक के लेखक | पुस्तक की श्रेणी | पुस्तक का साइज | कुल पृष्ठ |
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विनयमोहन शर्मा | शोध,विज्ञान,साहित्य | 63 MB | 228 |
पुस्तक से :
शोध, खोज, अनुसंधान, अन्वेषण, गवेषणा सभी हिन्दी में पर्यायवाची शब्द हैं। इसी को मराठी में संशोधन और अंग्रेजीमें रिसर्च कहते हैं । खोज में सर्वथा नूतन सृष्टि का नहीं, अज्ञात को ज्ञात करने का ही भाव है। मनुष्य बुद्धिसम्पन्न प्राणी होनेके कारण अपनी सचेतावस्था से ही जिज्ञासु रहा है। वह 'अहम्' (आत्मा), 'इदम्' ( सृष्टि या जगत् ) और 'सः' (ब्रह्म, परमात्मा) को जाननेके लिए पर्युत्सुक रहा है। जगत् में वह क्यों है ? जगत् ही क्यों है ? मुझे और जगत् को यहाँ लाने वाला कौन है ? मेरा और जगत् का परस्पर क्या सम्बन्ध है, आदि प्रश्न उसे झकझोरते जा रहे हैं। उसकी ज्ञानकी पिपासा कभी तृप्त नहीं हुई। उसकी इसी अतृप्ति ने अनेक भौतिक तथा आध्यात्मिक रहस्योंको तथ्य रूप प्रदान कर मानव की ज्ञान-संपदा में लगातार अभिवृद्धि की है।
ज्ञान के क्षेत्रमें शोध का कार्य निरन्तर जारी रहता है—शोध ज्ञान की किसी एक सीमा तक पहुँचकर रुक नहीं जाता, वह आगे बढ़ता ही जाता है। विज्ञानके सिद्धान्तों को लोग प्रायः शाश्वत मानते रहे हैं। अब यह मान्यता भी खण्डित होने लगी है। वे परिस्थिति विशेषमें भले ही सत्य अथवा अकाट्य रहे हों पर उनकी सत्यता और अकाट्यता सार्वकालिक सिद्ध नहीं हो पायी। उदाहरणार्थ- पहले अणुको पदार्थ का न्यूनतम अंश माना जाता था पर आधुनिक शोधने परमाणु को उसका न्यूनतम अंश सिद्ध किया है। यद्यपि इसे आधुनिक शोध कहा गया है परन्तु भारतीय सांख्यकारोंने इसका सदियों पूर्व अन्वेषण कर लिया था। वे तो परमाणुओं को तन्मात्राओ से निर्मित मानते हैं। अतः परमाणु भी पदार्थका सूक्ष्मतम अवयव नहीं है।
शैक्षिक शोध में तालिका प्रणालीका बहुतायत से प्रयोग किया जाता है। अन्य विषयों की शोधमें भी प्रश्नकर्ता और उत्तरदाता आमने-सामने रहते हैं। तब प्रश्नकर्ता को अपने प्रश्नों के उत्तर प्राप्त करनेमें बड़ी सुविधा हो जाती है। वह बड़ी आत्मीयता से तथ्य एकत्र कर लेता है। डाक द्वारा प्रपत्र भेजने पर या तो समय पर उत्तर नहीं मिलता या मिलता है तो अपूर्ण मिलता है, या कभी-कभी नहीं भी मिलता । अत: किसी समस्याको समझनेके लिए प्रत्यक्ष प्रपत्र भराने की प्रणाली अधिक सुविधाजनक है। क्योंकि यदि उत्तरदाता प्रश्नका ठीक अर्थ नहीं समझ पाता तो शोधार्थी उसी समय उसका स्पष्टीकरण कर देता है।
(नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)
डाउनलोड लिंक :
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