श्री रामकृष्ण परमहंस (गीता प्रेस) हिन्दी पुस्तक | Shri Ramakrishna Paramhansa Hindi Book PDF

                                              

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श्री रामकृष्ण परमहंस हिंदी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Shri Ramakrishna Paramhansa Hindi Book

इस पुस्तक का नाम है : श्री रामकृष्ण परमहंस | इस पुस्तक के लेखक हैं : श्री चिदात्मानंद |  पुस्तक का प्रकाशन किया है : गीता प्रेस | इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 9 MB हैं | पुस्तक में कुल 263 पृष्ठ हैं |

Name of the book is : Shri Ramakrishna Paramhansa. This book is written by : Shri Chidatmananda. The book is published by : Gita Press. Approximate size of the PDF file of this book is 9 MB. This book has a total of 263 pages.


पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
श्री चिदात्मानंदजीवनी,प्रेरक9 MB263



पुस्तक से : 

गदाधर की साधना यहीं से आरम्भ होती है और यहीं से हम उन्हें श्रीरामकृष्ण के नाम से सम्बोधन किया करेंगे। अब वह तन मन से भगवती मां काली की सेवा में तत्पर हो गये । प्रातःकाल उठकर वह माँता के लिये बगीचे से उत्तम पुष्प चुनकर इकट्ठे किया करते और गंगाजल भरकर लाते फिर चन्दन को घिसकर तैयार करते, कर्पूर आदि पूजा की सारी सामग्री सजाकर मन्दिर में रख देते । वह कालीविग्रह को साक्षात् चिन्मय आद्या शक्ति ही समझते थे । इसलिये बड़े चाव और प्रेम से माँ की सेवा किया करते थे ।

 

एक समय श्री राधाकृष्ण के मन्दिर के पुजारी के हाथ से भगवान् की मूर्ति का चरण खण्डित हो गया । इस पर रानी को बहुत चिन्ता हुई, क्योंकि भगवान् की मूर्ति का इस प्रकार खण्डित हो जाना कुल के लिये अशुभ माना जाता है । रानी द्वारा विद्वान् पण्डितों को बुलाकर उन लोगों से राय ली गयी । सबने एकमत होकर यही कहा कि इस मूर्ति को गंगामे विसर्जित कर नयी मूर्ति की स्थापना करनी चाहिये ।

 

 

कोई भी कार्य हो, वह इसी क्रम में पूरा होता है। ऐसे श्रद्धालु मनुष्यों ने ही कुछ सिद्धि प्राप्त की है, ऐसे ही महापुरुष जगत् के पथ-प्रदर्शक हो गये हैं। इसी विश्वास को लेकर श्रीरामकृष्ण ने भी साधन आरम्भ किया और 'माँ काली' की सेवा-पूजा में वह ऐसे मग्न हो गये कि कभी-कभी तो बाह्यज्ञान के अभाव से वह पूजा का क्रम ही भूल जाया करते थे।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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