श्रीमद्भागवत गीता टीका सहित | Srimad Bhagwat Gita with Tika Hindi PDF

 

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श्रीमद्भागवत गीता टीका सहित हिन्दी ग्रन्थ के बारे में अधिक जानकारी | More details about Srimad Bhagwat Gita with Tika Hindi Book

इस ग्रन्थ का नाम है : श्रीमद्भागवत गीता टीका सहित | इस पुस्तक के लेखक हैं : श्रीत्रिदंडी स्वामीजी महाराज. पुस्तक के संपादक हैं : डॉ सुदामा सिंह. इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 48 MB हैं | इस पुस्तक में कुल 860 पृष्ठ हैं |

Name of the book is: Srimad Bhagwat Gita with Tika | This book is written by : Shri Tridandi Swamiji Maharaj. This book is edited by : Dr Sudama Singh. Approximate size of the PDF file of this book is: 48 MB. This book has a total of 860 pages.

पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
श्रीत्रिदंडी स्वामीजी महाराजधर्म, भक्ति48 MB860


पुस्तक से :

भक्तजन अपने अभिमत की सिद्धि के लिये जिनसे याचना करते हैं उस पुरुष का नाम जनार्दन है, उसके सम्बोधन में हे जनार्दन होता है। भगवान् श्रीकृष्ण जनार्दन हैं, क्योंकि भक्त अक्रूर, मालाकार, विदुर आदि ने अपने मनोरथ की सिद्धि के लिये उनसे याचना की जनार्दन कुल के नाश करने से उत्पन्न जो दोष है उसको हम अच्छी तरह जानने वाले हैं, क्योंकि धृतराष्ट्रपक्षवालों की तरह हमलोग लोभ से भ्रष्टचित्त वाले नहीं हैं। इस कारण जानबूझकर इस घोर पाप में क्यों प्रवृत्त हों ? हमें तो विचार करके इस पाप से बचने का उपाय करना चाहिए और युद्ध से हट जाना चाहिए।

 

अपने निश्चय में शंका करते हुए अर्जुन कहता है कि हम दोनों पाण्डव और कौरव दलों में कौन श्रेष्ठ है यह भी हमें नहीं ज्ञात होता है, क्योंकि एक तो हम अल्पज्ञ हैं, दूसरे विपत्ति में दोष हो जाने से मुझे निश्चय नहीं होता है। पापियों के साथ संग्राम करने की बात आपकी यदि हम मान भी लें तो यह भी हमें पता नहीं कि हम उन लोगों को जीतेंगे कि वे हम लोगों को जीतेंगे। यदि यह भी हम मान लें कि जीत हमारी ही होगी तौभी अन्य महात्मा, ब्राह्मणको कौन कहे जिन धृतराष्ट्र के दुर्योधनादि पुत्रों को मैं मारकर जीने की इच्छा भी नहीं करता वे ही बन्धुजन मरनेके लिए सामने खड़े हैं।

 


सर्वान्तर्यामी भगवान् विचार करते हैं कि अर्जुन ने मुझे गुरु भी बनाया और मेरी शरण होकर इसने कल्याण का साधन भी पूछा परन्तु मेरे बिना कुछ कहे ही युद्ध न करने की घोषणा भी कर देता है, इस प्रकार जो शरीर और आत्मा के स्वरूप का यथार्थ ज्ञान न होने के कारण शोक में निमग्न हो रहा है, और साथ ही शरीर से आत्मा को अलग समझना ही जिसका हेतु है ऐसे धर्मका भी वर्णन कर रहा है।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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