सूर्यपुराण हिन्दी पुस्तक | Surya Puran Hindi Book PDF

                                          

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सूर्यपुराण हिंदी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Surya Puran Hindi Book

इस पुस्तक का नाम है : सूर्यपुराण | इस पुस्तक के लेखक हैं : डॉ. चमनलाल गौतम |  पुस्तक का प्रकाशन किया है : संस्कृति संस्थान, बरेली | इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 7 MB हैं | पुस्तक में कुल 497 पृष्ठ हैं |

Name of the book is : Surya Puran. This book is written by : Dr Chamanlal Gautam. The book is published by : Sanskriti Sansthan, Bareilly. Approximate size of the PDF file of this book is 7 MB. This book has a total of 497 pages.

पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
डॉ. चमनलाल गौतमभक्ती,धार्मिक7 MB497



पुस्तक से : 

प्रचण्ड वेग वाले आपको नमस्कार है तथा प्रचण्ड क्रोध वाले आपको प्रणाम है | वरेण्य, शरण्य और ब्रह्मग्य आपके लिये हे चण्डिकापते नमस्कार है ||५०|| आप सभी पर अनुग्रह करने वाले हैं, धनंद आपकी सेवा मे नमस्कार है तथा आपको बारम्बार प्रणाम है। इस अपार रूपी सागर के तरण करने के लिये पोत स्वरूप आपकी सेवा मे प्रणाम तथा अणिमा आदि सिद्धियो के प्रदाता आपको मेरा नमस्कार है ॥५१॥ ज्येष्ठ सामादि सस्थ और रथन्तर के लिये नमस्कार है | त्रिगाथ, त्रिमात्र, त्रिमूत्ति और त्रिगुणात्मा आपकी सेवा मे नमस्कार है ||५२॥ निवेदी, त्रिमन्ध्य, त्रिशून्य, त्रिवर्मा, विदेह, त्रिकाल और निशक्ति व्यापी आपके लिये नमस्कार है ॥५३॥ तीन शक्तियों से विहीन तथा शक्तित्रय से युक्त अर्थात् तीन शक्तियों के धारण करने वाले, योगीश, विष का हनन करने घाले, विजय आपके लिये बारम्बार प्रणाम अर्पित है।

 

गायत्री के नाथ, गायत्री के हृदय, गायत्री के गोप्ता और गायत्र्य आपके लिये बार-बार नमस्कार है । जो कोई इस स्तोत्र को जो कि देवो के द्वारा समुदीरित है पढता है वह अब तक जीवन में किये हुए जो भी पाप होते हैं उन सबसे विमुक्त होकर परमगति को प्राप्त हो जाता है। इस प्रकार से देवो के द्वारा स्तुति किये जाने पर भगवान् शम्भुनाथ परम प्रसन्न हो गये थे और वरदान प्रदान करने  के लिए वे प्रकट हुए थे, महादेव जी ने कहा-हे देवगणो । वरदान का वरण कर लो ।

 

 

उसके पश्चात आप लोग अवश्य ही सुख की प्राप्ति करेंगे |१५| इसके पश्चात भगवान शंभूनाथ ने ऐसे वचन सुनकर नारायण संग समस्त देवगण मेरु पर्वत मे चले गये जो गिरिवरो मे बहुत ही उत्तम था ।१६। उस पर्वत के उत्तर के भाग में शुभ शरधान वन था और उसमे सभी महान आत्मा वही निवास करते थे|१७| इसके पश्चात वह सम्पूर्ण पर्वत और उसका वन एवं वानन सुवर्ण को प्राप्त हो गया था |१९| अग्नि जिनमे प्रमुख था

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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