वाल्मीकि रामायण कथा सुधा सागर हिन्दी पुस्तक | Valmiki Ramayan Katha Sudha Sagar Hindi Book PDF

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वाल्मीकि रामायण कथा सुधा सागर हिन्दी ग्रन्थ के बारे में अधिक जानकारी | More details about Valmiki Ramayan Katha Sudha Sagar Hindi Book

इस ग्रन्थ का नाम है : वाल्मीकि रामायण कथा सुधा सागर | इस पुस्तक के लेखकहैं : आचार्य कृपाशंकर रामायणी. इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : गीता प्रेस, गोरखपुर. इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 50 MB हैं | इस पुस्तक में कुल 534 पृष्ठ हैं |

Name of the book is: Valmiki Ramayan Katha Sudha Sagar | This book is written by : Acharya Kripashankar Ramayani. This book is published by : Gita-Press Gorakhpur. Approximate size of the PDF file of this book is: 50 MB. This book has a total of 534 pages.

पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
आचार्य कृपाशंकर रामायणीधर्म, भक्ति50 MB534


पुस्तक से :

महर्षि वाल्मीकिजीने अपौरुषेय वेदों-उपनिषदों तथा देवर्षि नारदजीके उपदेशोंसे श्रीरामकी कथावस्तु जानकर एवं समाधिजनित ऋतम्भराप्रज्ञासे रामायणके सम्पूर्ण चरित्रका प्रत्यक्ष साक्षात्कार कर रामायणकी रचना की. वे रामके समकालीन महर्षि थे, अतः इसमें वर्णित कथावस्तु सत्य घटनाके अन्तर्गत है। इसीलिये रामायणकी अद्वितीय लोकप्रियता निरन्तर अक्षुण्ण ही नहीं वरन् शताब्दियांतक बढ़ती रही; क्योंकि मानव-हृदयको आकर्षित करनेकी अद्वितीय शक्ति जो रामकथामें विद्यमान है यह अन्यत्र दुर्लभ है। भारतीय मनीषियोंकी दृष्टिमें राम और कृष्णकी कथाएँ केवल याग्विलास या कण्ठशोषण मात्र नहीं हैं, वे अनुपम शान्ति भक्ति तथा मुक्ति देनेवाली हैं। इसी कारण उनकी लोकप्रियता है।

 

जबतक मन शुद्ध नहीं होगा तबतक कोई क्रिया, साधना सफल नहीं होगी। यह बात आप निचयपूर्वक समझ लें- आप निर्धन हैं कोई चिन्ता नहीं, मूर्ख हैं कोई चिन्ता नहीं, आपको बोलना नहीं आता है कोई चिन्ता नहीं, आपने सभ्यताका पाठ नहीं पढ़ा है कोई चिन्ता नहीं। | श्रीठाकुरजीने यह कहीं नहीं कहा है कि हमें | विद्वान् अच्छा लगता है मुर्ख नहीं।

 


अयोध्याजीके वैभवका बहुत सुन्दर वर्णन है श्रीमद्रामायणमें. उस वर्णनको प्रणाम करते हुए मैं एक बात कहूँगा, जहाँका दाना-पानी अच्छा हो वही स्थान सुन्दर माना जाता है। श्रीअयोध्याजीमें मह-मह महकता हुआ और चाँदीकी तरह चमाचम चमकता हुआ शालि नामका धान प्रभूत मात्रामें होता था। शालय: श्वेततण्डुलाः'। श्रीअयोध्याजीका जल तो इतना मधुर है मानो इक्षुरस- गन्नेका रस हो। इक्षुरस और श्वेत सुगन्धित चावल का जोड़ा है।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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