योगिनी तंत्र हिन्दी ग्रन्थ के बारे में अधिक जानकारी | More details about Yogini Tantra Hindi Book
इस ग्रन्थ का नाम है : योगिनी तंत्र | इस पुस्तक के लेखक/संपादक हैं : पंडित कन्हैयालाल मिश्र. इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : लक्ष्मीवेंकटेश्वर छापाखाना. इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 10 MB हैं | इस पुस्तक में कुल 558 पृष्ठ हैं |Name of the book is: Yogini Tantra | This book is written/edited by : Pandit Kanhaiyalal Mishra. This book is published by : Lakshmivenkateshwar Chhapakhana. Approximate size of the PDF file of this book is: 10 MB. This book has a total of 558 pages.
पुस्तक के लेखक | पुस्तक की श्रेणी | पुस्तक का साइज | कुल पृष्ठ |
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पंडित कन्हैयालाल मिश्र | तंत्रसाधना, धर्म | 10 MB | 558 |
पुस्तक से :
समयके परिवर्तन के साथ साथ ऐसा जमाना आया कि आगम या तंत्रके ग्रंथ लोपसे हो गये. जिन महाशयों के पास दो चार पोथियां रहीं, वे उनको हवा भी नहीं लगने देते थे इस कारण यह ग्रंथ लोप होता चला गया. दश बारह वर्ष का समय हुआ कि हमारे पूज्यपाद बड़े भ्राता बलदेवप्रसादजी मिश्र महोदयने तंत्रशास्त्र के अनेक ग्रंथ प्राप्त करके स्वयं भी छपाये और अन्य अन्य प्रकाशकों से भी प्रकाशित कराये।
प्रस्तुत योगिनी तंत्र तंत्रशास्त्रका विख्यात और माननीय ग्रंथ है। इसमें - षट्कर्म के अतिरिक्त उन समस्त पीठस्थानोंका विस्तृत वर्णन है जहांपर तंत्र साधन करनेसे शीघ्रही प्रयोगकी सिद्धि होती है और साधक अपनी मनोकामनाको प्राप्त हो जाता है।
गुरुका स्थान ही कैलाश है, गुरुका गृह ही चिन्तामणिका गृह है, गुरुकी वृक्षावलीही कल्पवृक्षाली है अर्थात् वहाँके वृक्ष कल्पवृक्ष हैं और गुरुजीके घरकी लता कल्पलता है. गुरुजीके घरका जल स्वर्गीय गंगा है. अतएव हे शिवे! गुरुका समस्त ही पुण्यमय है. हे महेश्वरि। मतिमान् मनुष्य विचारते हैं कि गुरुके घरमें स्थित दासी भैरवीतुल्य और सेवक भैरवरूप हैं। जो गुरुके स्थानकी प्रदक्षिणा करता है वह मनुष्य सप्तद्वीपा पृथ्वी को प्रदक्षिणा करके उसके फलको पाता है.
(नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)
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