वैशाली की नगरवधू हिंदी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Vaishali ki Nagar Vadhu Hindi Book
इस पुस्तक का नाम है : वैशाली की नगरवधू | इस पुस्तक के लेखक हैं : आचार्य चतुरसेन शास्त्री | पुस्तक का प्रकाशन किया है : अज्ञात | इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 10 MB हैं | पुस्तक में कुल 422 पृष्ठ हैं |
Name of the book is : Vaishali ki Nagar Vadhu. This book is written by : Acharya Chatursen Shastri. The book is published by : Unknown. Approximate size of the PDF file of this book is 10 MB. This book has a total of 422 pages.
पुस्तक के लेखक | पुस्तक की श्रेणी | पुस्तक का साइज | कुल पृष्ठ |
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आचार्य चतुरसेन शास्त्री | उपन्यास | 10 MB | 422 |
पुस्तक से :
इन्हें ले और यहां से तीन योजन दूरी पर पावा पुरी है वहां जा वहां पर मेरा सहपाठी मित्र इन्द्रभूति रहता है, उसे यह मुद्रिका दिखाना, वह तेरी सहायता जरूर करेगा । वहां उसकी सहायता से तू इन रत्नों को बेच और बहुत-सी विक्रय सामग्री मोल ले, दास दासी कम्मकर संग्रह कर ठाट-बाट से एक सार्थवाह के रूप में चम्पा जा और अपने श्वसुर गृहपति का अतिथि कृतपुण्य होकर बन ।
जयराज महासंधि-वैग्राहिक यह कहकर बैठ गये। अब गान्धार कायक ने खड़े होकर कहा – भन्ते गण सुनें, अष्टमहाकुल के बज्जियों ने जो कुछ सिंधुनद पर अपनी कीर्ति विस्तार की है उसी का बखान करने मै यहां आया हूँ, गान्धार-गणपति को ओर से साधुवाद और कृतज्ञता का संदेश लेकर ।
जयराज ने साहस किया, वे लोमड़ी की भांति चक्कर काट कर अगले गांव की ओर बढ़े। वे जानते थे कि वह ग्राम बड़ा था तथा वहां ठहरने की भी सुविधाएं भी थीं । ये ग्राम मल्लों और कोलों के थे । इससे जयराज को यह भी आशा थी कि आवश्यकता होने पर नगरपाल उनकी सहायता कर सकेंगे ।
(नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)
डाउनलोड लिंक :
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