121 दिमागी कसरतें हिन्दी पुस्तक | 121 Dimagi Kasraten Hindi Book PDF

  

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121 दिमागी कसरतें हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about 121 Dimagi Kasraten Hindi Book

इस पुस्तक का नाम है : 121 दिमागी कसरतें | इस पुस्तक के लेखक हैं : हरीश चंद्र सन्सी. इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : अनु प्रकाशन. इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 58 MB हैं | इस पुस्तक में कुल 164 पृष्ठ हैं |

Name of the book is: 121 Dimagi Kasraten | This book is written by : Harish Chandra Sansi. This book is published by : Anu Prakashan. Approximate size of the PDF file of this book is: 58 MB. This book has a total of 164 pages.

पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
हरीश चंद्र सन्सीचिल्ड्रन58 MB164


पुस्तक से :

तभी राधिका ने सूरज को पूरे वेग से दौड़ा दिया और मात्र डेढ़ घंटे में वह चंद्रपुर जा पहुंचा। रास्ते में जब दुर्गा मंदिर आया था, तब उसने दौड़ते घोडे के ऊपर बैठे-बैठे ही अपना शीश झुका दिया था। ससुरालसे वह ठीक आधा घंटा बाद ही पत्नी को लेकर चल पड़ा और सीधा मंदिर आ कर रुका. इस सारी यात्रा में सूरज ६० मील प्रति घंटे की औसत गति से मागता रहा था।

 

प्रियदर्शिनी को न जाने क्या सूझी कि उसने घुमा-फिरा कर उत्तर दिया, देखो याद, दादाजी रिटायर हो चुके हैं। उनकी आयु तो नहीं बताऊंगी, हा, मेरी और दादाजी की आयु का जोड़ पिताजी और माताजी की आयु के जोड़ के बराबर है। तो तुम मुझे अपनी तीनों की ही आयु बता दो। "ऊं. हूं।" प्रियदर्शिनी ने जोर से सिर हिलापा, 'यह नहीं बताऊंगी, स्वयं ही जान जाओ'.

 


सेठजी को चिन्तामग्न देख उनके कुशाग्र-बुद्धि पुत्र रामसिंह ने उनकी चिन्ता का कारण जानना चाहा। कारण पता चलने पर उसने उस नक्शे पर दृष्टिपात किया। और क्षण भर में नक्शे में खाली खानों को भर कर ताले का नंबर निकाल लिया। फिर तो ताला पलक झपकते ही खुल गया। बताइए ताले का नंबर क्या था?

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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