आत्म विज्ञान हिन्दी पुस्तक | Aatm Vigyan Hindi Book PDF

                                     

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आत्म विज्ञान हिंदी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Aatm Vigyan Hindi Book

इस पुस्तक का नाम है : आत्म विज्ञान | इस पुस्तक के लेखक हैं : स्वामी महेशानंद गिरि । पुस्तक का प्रकाशन किया है : श्री दक्षिणामूर्ति मठ प्रकाशन, वाराणसी | इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 15 MB हैं | पुस्तक में कुल 106 पृष्ठ हैं |

Name of the book is : Aatm Vigyan. This book is written by : Swami Maheshananda Giri. The book is published by : Shri Dakshinamurti Math Prakashan, Varanasi . Approximate size of the PDF file of this book is 15 MB. This book has a total of 106 pages.

पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
स्वामी महेशानंद गिरिधर्म,ज्ञान,भक्ति15 MB106



पुस्तक से : 

इसमें श्रुति बतलाती है कि उस आत्मतत्त्व का अपरोक्ष साक्षात्कार कर लिया, तो फिर न किसी विषय की इच्छा, न किसी की कामना मनुष्यको संतप्त कर सकती है। उस आत्माके अपरोक्ष स्वरूप का ज्ञान क्यों नहीं है? उसकी दुर्लभता किंनिमित्तक है, किस कारणसे है, इसका विचार करते हुए यह समझ में आता है कि ये मन का ही दोष है। मन उस परमात्म तत्त्व को ग्रहण न करके, अनात्म पदार्थों की आसक्ति से अनात्म पदार्थों का ही ग्रहण करता रहता है। इसलिये शास्त्रकारों ने कहा है कि विषयों से वैराग्य आवश्यक है। 

 

अन्धकार में रस्सी को साँप देखते हो, उस समय उसे सर्प समझकर ही तो भागते हो। भेदज्ञान तो है, परन्तु वह अज्ञान से प्रतीत होने वाले अभेद को दूर नहीं कर सकता है जिससे वह रस्सी भी साँप दीखता है। इसलिये आचार्य शंकर कहते हैं कि यह अज्ञान एक भावरूप पदार्थ है। बिल्कुल  एक चिकित्सक की तरह, आचार्य निदान करते हैं कि यह जो संसार रोग है, इसका निदान है अज्ञान।

 

 

जिस भी मन में संसार की वासना भरी है, उसमें आसक्त हुआ कोई जीव किसी चीज़ की परीक्षा करने में तो उतरता ही नहीं। बाकी सब चीज़ों का विचार कर लेगा पर जहाँ दुःख, बन्धन का अनुभव हो रहा है उसका विचार कदापि नहीं करेगा। इसलिये वो अपने ही आप को नहीं जान पा रहा।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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