आदित्य हृदय स्तोत्र हिन्दी पुस्तक | Aditya Hridaya Stotra Hindi Book PDF

 

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आदित्य हृदय स्तोत्र हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Aditya Hridaya Stotra Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : आदित्य हृदय स्तोत्र | इस पुस्तक के लेखक/संपादक हैं : पंडित सत्येश कुमार मिश्र | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : दीपचंद बुकसेलर नयागंज | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 48 MB है | इस पुस्तक में कुल 45 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "आदित्य हृदय स्तोत्र" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Aditya Hridaya Stotra | This book is authored by : Pandit Satyesh Kumar Mishra | This book is published by : Deepchand Book Seller Nayaganj | PDF file of this book is of size 48 MB approximately. This book has a total of 45 pages. Download link of the book "Aditya Hridaya Stotra" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के संपादकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
पंडित सत्येश कुमार मिश्रधार्मिक48 MB45



पुस्तक से : 

ॐ रश्मिमते अंगुष्ठाभ्यां नमः। ॐ समुद्यते तर्जनीभ्यां नमः। ॐ देवासुरनमस्कृताय मध्यमाभ्यां नमः। ॐ विवस्वते अनामिकाभ्यां नमः। ॐ भास्कराय कनिष्ठिकाभ्यां नमः। ॐ भुवनेश्वराय करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः।

 

आप जयस्वरूप विजय और कल्याणके दाता हैं। आपके रथ में हरे रंग के घोड़े जुते रहते हैं। आपको बारंबार नमस्कार है। सहस्रों किरणों से सुशोभित भगवान् सूर्य आपको बारंबार प्रणाम है। आप अदिति के पुत्र होनेके कारण आदित्य नाम से प्रसिद्ध हैं।

 

इस गोपनीय स्तोत्रका नाम 'आदित्यहृदय' है। यह परम पवित्र और व्यक्ति के लिए हितकारी है। इससे सदा विजयकी प्राप्ति होती है। यह नित्य अक्षय और परम कल्याणमय स्तोत्र है। सम्पूर्ण मंगलों का भी मंगल है। इससे सब पापोंका नाश हो जाता है। यह चिन्ता और शोक को मिटाने उत्तम साधन है।

 

 

उनका ये उपदेश सुनकर महातेजस्वी प्रतापी श्री रामचन्द्रजी का शोक दूर हो गया और उन्होंने प्रसन्न होकर आदित्यहृदय को धारण किया और तीन बार आचमन करके शुद्ध हो भगवान सूर्यकी ओर देखते हुए इसका तीन बार जप किया। इससे उन्हें बड़ा हर्ष हुआ। फिर परम पराक्रमी रघुनाथजी ने धनुष उठाकर रावणकी ओर देखा और उत्साहपूर्वक विजय पाने के लिए वे आगे बढ़े। उन्होंने पूरा प्रयत्न करके रावण के अंतका निश्चय किया।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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