श्रीमद भागवत महापुराण - गीता प्रेस संस्कृत मूल ग्रन्थ | Srimad Bhagwat Mahapuran - Gita Press Sanskrit Book PDF

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श्रीमद भागवत महापुराण संस्कृत ग्रन्थ के बारे में अधिक जानकारी | More details about Srimad Bhagwat Mahapuran Sanskrit Book



इस ग्रन्थ का नाम है : श्रीमद भागवत महापुराण | इस ग्रन्थ के लेखक हैं : महर्षि वेदव्यास | ग्रन्थ के प्रकाशक हैं : गीता प्रेस, गोरखपुर | इस ग्रन्थ की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 492 MB हैं | इस पुस्तक में कुल 778 पृष्ठ हैं | इस पेज पर आगे "श्रीमद भागवत महापुराण" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.

Name of the book is : Srimad Bhagwat Mahapuran. This book is written by : Maharshi Vedvyas. The book is published by : Gita Press, Gorakhpur. Approximate size of the PDF file of this book is 492 MB. This book has a total of 778 pages. The download link of the book "Srimad Bhagwat Mahapuran" has been given further on this page from where you can download it for free.

पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
महर्षि वेदव्यासधर्म, भक्ति, आध्यात्म492 MB778



पुस्तक से : 

श्रीमद्भागवतीय विषयाणां सप्रपश्चमुपपादनस्य संक्षिप्तेऽस्मि निवेदने नास्स्यवसरोऽव काशश्च । पुराणस्यास्य ज्ञाने भक्तावुभयत्र वा चरमं तात्पर्य ज्ञानस्य भक्तेश्व कीदृशं स्वरूपमित्यादेविवेचनमावश्यकमपि स्थानसंकोचात् परिहीयते ।

 

तथाप्यनुबन्ध चतुष्टयज्ञानं बिना कस्मिंश्चिदपि ग्रन्थे कस्यचिदपि प्रवृत्तेर्दुः शकतया तदिदानीं प्रदर्श्यते । 'धर्मः प्रोज्झितकैतवोऽत्र परमो निर्मत्सराणां सतां वेद्यं वास्तवमत्र वस्तु शिवदं तापत्रयोन्मूलनम्' इत्यस्मिन्हलोके विशेषतोऽनुबन्धबन्धन मेव विलोक्यते।

 

विषाक्तां भागवते परीक्षेति प्रसिद्धधैव भागवतस्य विषयगाम्भीर्यमनुमीयते। उपडम्यन्ते चास्योपरि नानामाषासु निबद्धा बहुविधा व्याख्याः । देवभाषायां तु भागवतोपरि बहुराष्टीकाष्टी किताः सन्ति एतेन श्रीमद्भागवतस्य लोके समादरणीयता सूच्यते महत्ता च।

 

 

ननु 'अत्र सर्गो विसर्गश्च' इत्यादिना सर्गादिवर्णनस्याप्युपक्रान्तत्वेन कथं पूर्वोक्त एव विषयोऽवधार्यत इति चेच्यताम्- पुराणलक्षणसंगमनाय सर्गादीनामानुषङ्गिकं वर्णनमिह बोद्धव्यम्, न हि तत्र विवक्षा स्थूलभूतानां भूगोलखगोळ्योर्बिराङ्क्रह्माण्डस्य च वर्णनं भगवतः स्थूलरूपनिरूपणामिप्रायेण बोध्यम्, न तु भौगोलिकज्ञानसंपादनाय; परितः परिवर्तनशीलेऽस्मिञ्जगति कचित् कालविशेषे लिखितस्य भूगोटवर्णनस्य सदैवो पयोगासंभवात्।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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