भक्त दिवाकर - गीता प्रेस हिन्दी पुस्तक | Bhakt Diwakar - Gita Press Hindi Book PDF

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भक्त दिवाकर हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Bhakt Diwakar Hindi Book

इस पुस्तक का नाम है : भक्त दिवाकर | इस पुस्तक के लेखक हैं - श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : गीता प्रेस, गोरखपुर | इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 25 MB हैं | इस पुस्तक में कुल 118 पृष्ठ हैं |

Name of the book is : Bhakt Diwakar. This book is written by : Shri Hanuman Prasad Poddar | The book is published by : Gita Press, Gorakhpur. Approximate size of the PDF file of this book is 25 MB. This book has a total of 118 pages.


पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
हनुमान प्रसाद पोद्दार  भक्ति, धर्म25 MB118



पुस्तक से : 

शास्त्रोंका अध्ययन, पवित्र अन्तःकरण और भगवान्की भक्ति ये तीनों सद्विचार और श्रेष्ठ निश्चयके कारण हैं । विश्वानरने  अपनी मानसिक स्थिति और अधिकार का विचार करके यही निश्चय किया कि मुझे विवाह करना चाहिये, गृहस्थाश्रम स्वीकार करना चाहिये । शुभ मुहूर्त में उन्होंने अपने अनुरूप कुलीन कन्यासे विवाह किया और गृहस्थधर्मके अनुसार सदाचारका पालन एवं भगवान्का स्मरण-चिन्तन करते हुए अपना जीवन व्यतीत करने लगे।

 

एक दिन शुचिष्मतीने सोचा- 'अबतक हमलोग सन्तान हीन हैं । सन्तान दम्पति के प्रेमका मूर्तिमान् स्वरूप है। इस लोक और परलोक के सुखके लिये भी सन्तानकी आवश्यकता है । पुत्र पत्नी और पति दोनोंका एकत्व है, इसलिये हमें एक सन्तान तो चाहिये ही।

 

ध्यान तो बहुत से लोग करते हैं, परन्तु वे तो कुछ समय तक कर्तव्यपालन के लिये ध्यान करते हैं। इसी से वे अपने अन्तर्देश में प्रवेश नहीं कर पाते, क्योंकि ध्यान के बाद के लिये बहुत-सी वासनाओंको वे सुरक्षित रखे रहते हैं। किरातके चित्त में अब एक भीवासना अवशेष न थी, वह केवल भगवान्का दर्शन चाहता था। ध्यान अथवा मृत्यु, यही उसकी साधना थी। यही कारण है कि बिना किसी विक्षेप के उसने लक्ष्यवेध कर लिया और उसका चित्त भगवान्के लीला लोकमें विचरण करने लगा।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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