भक्त सौरभ - हनुमान प्रसाद पोद्दार हिन्दी ग्रन्थ | Bhakt Saurabh - Hanuman Prasad Poddar Hindi Book PDF

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भक्त सौरभ हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Bhakt Saurabh Hindi Book

इस पुस्तक का नाम है : भक्त सौरभ | इस पुस्तक के लेखक हैं - श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : गीता प्रेस, गोरखपुर | इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 25 MB हैं | इस पुस्तक में कुल 134 पृष्ठ हैं |

Name of the book is : Bhakt Saurabh. This book is written by : Shri Hanuman Prasad Poddar | The book is published by : Gita Press, Gorakhpur. Approximate size of the PDF file of this book is 25 MB. This book has a total of 134 pages.



पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
हनुमान प्रसाद पोद्दार  अध्यात्म, भक्ति, धर्म25 MB134



पुस्तक से : 

इसमें पाँच भक्तोंकी कथाएँ हैं, प्रथम दो भक्त बड़े ही भावुक और प्रेमी है। शेष तीन भक्तोका जीवन कष्टों से भरा हुआ परन्तु अत्यन्त उपदेशपूर्ण और श्रीभगवान्‌की कृपाका प्रत्यक्ष निदर्शक है। इनमें भक्त श्रीव्यासदासजी और मामा श्रीप्रयागदासजीकी कथाएँ श्रीनवलकिशोरदासजी विद्यार्थी और श्रीबिन्दुजी ब्रह्मचारी महोदय की लिखी है जो सर्वथा विश्वसनीय है और शेष तीन कथाओंमें शङ्कर पण्डितकी एक मराठी ग्रन्थ से और भक्त प्रतापराय तथा गिरवर की हस्तलिखित बंगला ग्रन्थ से ली गयी है।

 

जो पहले धर्म-कर्मकी शिक्षा देने में कुशल राजपुरोहित थे वही अब श्रीभगवद्भक्तिकी दीक्षा देनेमें पूरे राजगुरु हैं। इस बात को महाराजा का हृदय स्वीकार कर चुका. मोहरूप रात्रिका पौ फट गया। जीवन सफल करनेको मार्ग मिल गया। बार-बार नमन करने लगे और अपने भाग्यको सराहने लगे। शिक्षाके साथ दीक्षा भी मिल गयी; जिनको लेने आये थे उनके हाथ अपने आप बिक चले !

 

हरि विमुखनि जननी जनि जाये। हरिकी भक्ति विनु कुलहि लजावै॥ हरि विनु विद्या नरक बतावै। हरि नाम पढ़े साधुनि अति भावै॥ हरि बोलि हरि बोलि कहूँ न घ्यावै। हरि बोले बिनु 'व्यास' मुँह न दिखरावै॥ व्यास भक्ति सहगामिनी टेरें कहत पुकारि. लोक लाज तब ही गई बैठी मुँड उघारि॥

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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