भारतीय दर्शन की चिंतन धारा हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Bharatiya Darshan Ki Chintan Dhara Hindi Book
इस पुस्तक का नाम है : भारतीय दर्शन की चिंतन धारा | इस पुस्तक के लेखक हैं - राममूर्ति शर्मा | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : मणिद्वीप, दिल्ली | इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 198 MB हैं | इस पुस्तक में कुल 800 पृष्ठ हैं |
Name of the book is : Bharatiya Darshan Ki Chintan Dhara. This book is written by : Ram Murti Sharma | The book is published by : Manidweep, Delhi. Approximate size of the PDF file of this book is 198 MB. This book has a total of 800 pages.
पुस्तक के संपादक | पुस्तक की श्रेणी | पुस्तक का साइज | कुल पृष्ठ |
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राममूर्ति शर्मा | समाज,भारत | 198 MB | 800 |
पुस्तक से :
जैनदर्शनकी औपनिषद वेदान्तविषयक पृष्ठभूमिके सन्दर्भमें एक और तथ्य चिन्तनीय है, और वह यह कि औपनिषद वेदान्तके अनुसार जीव स्वभावतः आनन्दस्वरूप ब्रह्मही है। जब जीवके अविद्यात्मक कर्मोंका उच्छेद हो जाता है, तो वह अपने शुद्ध चैतन्य भावको प्राप्त करता है।
जैनदर्शनके अनुसार जीव अपने स्थूल शरीरके आकार वाला है। जैसे हाथीके शरीरमें स्थित जीव हाथीके शरीर वाला है एवं चींटीके शरीर में स्थित जीव चींटीके आकारका है। अतः जैनदर्शनका जीव संकोच एवं विकासकी क्रियासे युक्त है। अरूप होनेके कारण जीवकी अदृश्यता है।
इस सम्बन्धमें, चार्वाकदर्शनका माहात्म्योल्लेख करते हुए आलोचक विद्वानोंकी यह टिप्पणी है कि श्रद्धा किसीभी सत् सिद्धान्तकी जननी नहीं हैं, सिद्धान्तकी सृष्टि तो तर्कसे होती है। शुद्ध तर्ककी उपयोगिता दिखाकर चार्वाकोंने भारतीय विचारकोंके लिए एक मनोरम मार्गकी सृष्टिकी है।
लोकायत का नीतिशास्त्र एकमात्र अतिसुखबादका समर्थक है। लोकायतके नीतिशास्त्रके अनुसार सुखभोगको एक ऐसा सर्वातिशायी उद्देश्य माना गया है जो चाहे तो किसीसे ऋण लेलो, किन्तु सुखभोग करो। जैसे, यज्ञादि धर्म करनेके लिए ऋण लेना उचित है, वैसे ही, सुखभोगके लिए भी ऋणका औचित्य है। जब सुखके साधनस्वरूप धर्मके लिए ऋणका औचित्य है, तो धर्मके साध्य सुखके लिए ऋण लेनेकी नीतियोजनामें क्या पाप है।
(नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)
डाउनलोड लिंक :
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