ब्रह्मचर्य (हनुमान प्रसाद पोद्दार) हिन्दी पुस्तक | Brahmacharya (Hanuman Prasad Poddar) Hindi Book PDF

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ब्रह्मचर्य हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Brahmacharya Hindi Book

इस पुस्तक का नाम है : ब्रह्मचर्य | इस पुस्तक के लेखक हैं : हनुमानप्रसाद पोद्दार | पुस्तक के प्रकाशक हैं : गीता प्रेस, गोरखपुर | इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 9 MB हैं | इस पुस्तक में कुल 32 पृष्ठ हैं |

Name of the book is : Brahmacharya. This book is written by : Hanuman Prasad Poddar. The book is published by : Gita Press, Gorakhpur. Approximate size of the PDF file of this book is 9 MB. This book has a total of 32 pages.

पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
हनुमानप्रसाद पोद्दारअध्यात्म, स्वास्थ्य9 MB32



पुस्तक से : 

प्राचीन ऋषि-मुनियोंने सुख के अन्वेषण में प्रयत्न करते हुए बड़े अनुभव से यह सिद्धान्त निश्चित किया कि नित्यसुखकी प्राप्ति केवल एक परमात्माको प्राप्त कर लेनेमें है, यही मनुष्य जीवन का चरम लक्ष्य है, जबतक मनुष्य जगत् की सारी अनेकता में एक व्यापक विभुको उपलब्ध नहीं करता तबतक उसके दुःखोंकी आत्यन्तिक निवृत्ति नहीं होती। अतएव मनुष्यको चाहिये कि वह उस एक नित्य शुद्ध, बुद्ध, सच्चिदानन्दको प्राप्त करे और इसीलिये जीवको भगवत्कृपासे यह देवदुर्लभ मानव-देह प्राप्त हुई है।

 

मनीषियोंने चार आश्रमोंका विधान किया और उनमें ऐसा क्रम रक्खा कि जिससे संसारक्षेत्र में भी किसी प्रकारकी बाधा न आवे और मनुष्य क्रमशः मुक्तिकी ओर भी दृढ़ता के साथ अग्रसर होता जाय। आरम्भसे ही ऐसी व्यवस्था की गयी कि जिसमें प्रत्येक बालकके हृदय में ब्रह्मप्राप्तिका लक्ष्य स्थिर हो जाय और संयम-नियमपूर्वक रहकर वह उसीके उपयोगी सर्व प्रकारकी शिक्षा प्राप्त कर सके। इसीलिये पहले आश्रमका नाम हुआ 'ब्रह्मचर्य'।

 

 

जो बालक या बालिकाएँ भगवत्प्राप्तिके उद्देश्यसे आजीवन अथवा यथासाध्य अधिक कालतक ब्रह्मचर्यका पालन करना चाहें उन्हें स्वतन्त्रतासे करने देना चाहिये । परन्तु यह स्मरण रहे कि कहीं कुसङ्गतिसे उनका जीवन बीचमें ही बिगड़ न जाय क्योंकि यह बड़ा ही टेढ़ा प्रश्न है ! आजकल के स्कूल-कालेजोंका विषयप्रधान बिगड़ा हुआ वातावरण उनके जीवनकी प्रायः समस्त शक्तिको बिगाड़ देता है।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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