बुद्धि बढ़ाने की वैज्ञानिक विधि हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Buddhi Badhane ki Vaigyanik Vidhi Hindi Book
इस पुस्तक का नाम है : बुद्धि बढ़ाने की वैज्ञानिक विधि | इस पुस्तक के लेखक/संपादक हैं - पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : युग निर्माण योजना विस्तार ट्रस्ट, गायत्री तपोभूमि, मथुरा | इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 3 MB है | इस पुस्तक में कुल 50 पृष्ठ हैं | इस पेज पर आगे "बुद्धि बढ़ाने की वैज्ञानिक विधि" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.
Name of the book is : Buddhi Badhane ki Vaigyanik Vidhi. This book is written/edited by : Pandit Shriram Sharma Acharya | The book is published by : Yug Nirman Yojana Vistar Trust, Gayatri Tapobhumi, Mathura. Approximate size of the PDF file of this book is 3 MB. This book has a total of 50 pages. The download link of the book "Buddhi Badhane ki Vaigyanik Vidhi" has been given further on this page from where you can download it for free.
पुस्तक के संपादक | पुस्तक की श्रेणी | पुस्तक का साइज | कुल पृष्ठ |
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श्रीराम शर्मा आचार्य | योग, चिल्ड्रन, अध्यात्म | 3 MB | 50 |
पुस्तक से :
पूर्णतः बुद्धिहीन मनुष्य शायद कोई भी न होगा। जिसे हम मूर्ख या बुद्धिहीन कहते हैं, उसमें बुद्धि का बिलकुल अभाव नहीं होता। एक अध्यापककी दृष्टि में किसान मूर्ख है, क्योंकि वह साहित्यके विषय में कुछ नहीं जानता, किंतु परीक्षा करने पर मालूम होगा कि किसानको खेतीके संबंध पर्याप्त होशियारी, सूझ और योग्यता है।
दो मनुष्य यदि आपस में एक समान विषय का ज्ञान रखते हैं, तो वे एक-दूसरे की दृष्टि में बुद्धिमान् हैं। यदि दोनों की योग्यताएँ अलग-अलग विषयों में हैं, तो वे प्रायः एक-दूसरे को बुद्धिमान् न कहेंगे।
वर्षा ऋतु में बीज बोने पर बिना परिश्रम के फसल आ जाती है, किंतु अन्य ऋतुओंमें पानी आदि की विशेष व्यवस्था करके फसल प्राप्त होती है। बड़ी आयु में किसी विषयकी योग्यता प्राप्त करने के लिये यह अत्यंत आवश्यक है कि उस विषयमें आंतरिक उत्कंठा और तीव्र इच्छा हो।
भावुकता अर्थात् कल्पनासे प्रभावित होना बुद्धि का अच्छा गुण है। जिसमें भावुकता नहीं है, उसे जड़ या मूर्ख कहा जाता है। जिस व्यक्ति के मस्तिष्कमें कल्पना की उड़ान नहीं उड़ती और विभिन्न प्रकारके मानस चित्र नहीं बनते एवं जैसी-तैसी स्थितिमें ही संतुष्ट रहकर, जो उससे आगे की बात सोचने की जरूरत नहीं समझता, उसे पशु ही समझना चाहिए।
(नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)
डाउनलोड लिंक :
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