ध्यान और मानसिक पूजा - गीता प्रेस हिन्दी पुस्तक | Dhyan aur Mansik Puja - Gita Press Hindi Book PDF

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ध्यान और मानसिक पूजा हिंदी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Dhyan aur Mansik Puja Hindi Book

इस पुस्तक का नाम है : ध्यान और मानसिक पूजा | इस पुस्तक के लेखक हैं : जयदयाल गोयन्दका | पुस्तक का प्रकाशन किया है : गीता प्रेस, गोरखपुर | इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 24 MB हैं | पुस्तक में कुल 38 पृष्ठ हैं |

Name of the book is : Dhyan aur Mansik Puja. This book is written by : Jaydayal Goyandka. The book is published by : Gita Press, Gorakhpur. Approximate size of the PDF file of this book is 24 MB. This book has a total of 38 pages.

पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
जयदयाल गोयन्दकाआयुर्वेद,स्वास्थ्य24 MB38



पुस्तक से : 

साकार और निराकार दोनों ही की उपासनाओं में ध्यान सबसे आवश्यक और महत्वपूर्ण साधन है। श्रीभगवान्ने गीता में ध्यान की बड़ी महिमा गायी है। जहाँ कहीं उनका उन्चतम उपदेश है, वहीं उन्होंने मनको अपने में (भगवान् में) प्रवेश करा देनेके लिये अर्जुन के प्रति आज्ञा की है। योगशास्त्र में तो ध्यानका स्थान बहुत ऊँचा है ही। ध्यानके प्रकार बहुत से हैं। साधकको अपनी रुचि, भावना और अधिकार के अनुसार तथा अभ्यास की सुगमता देखकर किसी भी एक स्वरूप का ध्यान करना चाहिये। यह स्मरण रखना चाहिये कि निर्गुण-निराकार और सगुण साकार भगवान् बास्तवमें एक ही हैं।

 

श्रीमद्भगवद्गीताके छठे अध्याय के ग्यारहवसे तेरहवें श्लोकतकके वर्णनके अनुसार एकान्त, पवित्र और सात्त्विक स्थानमें सिद्ध, स्वस्तिक, पद्मासन या अन्य किसी सुख-साध्य आसनसे बैठकर नींदका डर न हो तो आँखें मूँदकर, नहीं तो आँखोंको भगवान् की मूर्तिपर लगाकर अथवा आँखोंकी दृष्टिको नासिकाके अग्रभागपर जमाकर प्रतिदिन कम-से-कम तीन घंटे, दो घंटे या एक घंटे - जितना भी समय मिल सके– सावधानी के साथ लय, विक्षेप, कषाय, रसास्वाद, आलस्य, प्रमाद, दम्भ आदि दोषोंसे बचकर श्रद्धा-भक्तिपूर्वक तत्परताके साथ ध्यान का अभ्यास करना चाहिये ।

 

 

एक सत्य सनातन असीम अनन्त विज्ञानानन्दघन पूर्णब्रह्म परमात्मा ही परिपूर्ण हैं | उनके सिवा न तो कुछ हैं, न हुआ और न होगा। उन परब्रह्मका ज्ञान भी उन परब्र ही है; क्योंकि चे ज्ञानस्वरूप ही हैं। उनके अतिरिक्त और जो कुछ भी प्रतीत होता है, सब कल्पनामात्र है। वस्तुतः वे ही वे हैं।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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