ईश्वर और उसकी अनुभूति - श्रीराम शर्मा आचार्य | Ishwar aur Uski Anubhuti - Shriram Sharma Acharya PDF

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ईश्वर और उसकी अनुभूति हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Ishwar aur Uski Anubhuti Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : ईश्वर और उसकी अनुभूति | इस पुस्तक के लेखक/संपादक हैं - पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : युग निर्माण योजना विस्तार ट्रस्ट, गायत्री तपोभूमि, मथुरा | इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 6 MB हैं | इस पुस्तक में कुल 169 पृष्ठ हैं | इस पेज पर आगे "ईश्वर और उसकी अनुभूति" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.

Name of the book is : Ishwar aur Uski Anubhuti. This book is written/edited by : Pandit Shriram Sharma Acharya | The book is published by : Yug Nirman Yojana Vistar Trust, Gayatri Tapobhumi, Mathura. Approximate size of the PDF file of this book is 6 MB. This book has a total of 169 pages. The download link of the book "Ishwar aur Uski Anubhuti" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के संपादकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
श्रीराम शर्मा आचार्य अध्यात्म, धर्म6 MB169


पुस्तक से : 

वस्तुत: जीत उन्हीं की होती है जो भौतिक शक्तियों तक ही सीमित न रह कर परमात्मा को अपने जीवनरथ का सारथी बना लेते हैं। उसे ही जीवन का सम्बल बनाकर मनुष्य इस जीवन-संग्राम में विजय प्राप्त कर लेता है।

 

भौतिक जीवन तथा शारीरिक क्षेत्रमें प्रेम की सीमा होती है। जब यही प्रेम आन्तरिक अथवा आत्मिक क्षेत्र में काम करने लगता है, तो उसे श्रद्धा कहते हैं। यह श्रद्धा ही ईश्वर-विश्वासका मूल स्रोत है एवं श्रद्धा के माध्यम से ही उस विराट की अनुभूति सम्भव है।

 

मनुष्य का अस्तित्व उसका अपना मूल अस्तित्व नहीं है। वह किसी एक महानतम अस्तित्वका अंश है, उसका प्रतिनिधि है। वह महानतम अस्तित्व क्या है? परमात्मा! परमात्मा ही वह सर्वोच्च प्रधान हैं, जिसकी इच्छासे मानव-जीवन अस्तित्वमें आया है।

 

अधिकार के साथ कर्त्तव्य का योग स्वाभाविक है। जहाँ अधिकार है वहाँ कर्त्तव्य भी है। जिस प्रकार आप ईश्वरीय अधिकारके पात्र हैं, उसी प्रकार ईश्वरीय कर्त्तव्यका दायित्व भी आपके कन्धों पर है। अधिकार और कर्त्तव्यों के क्रममें कर्त्तव्य का स्थान पहले है। कर्त्तव्यके आधार पर ही अधिकार की प्राप्ति होती है।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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