ईश्वर का विराट रूप - श्रीराम शर्मा आचार्य हिन्दी पुस्तक | Ishwar ka Virat Roop - Shriram Sharma Acharya Hindi PDF

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ईश्वर का विराट रूप हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Ishwar ka Virat Roop Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : ईश्वर का विराट रूप | इस पुस्तक के लेखक/संपादक हैं - पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : युग निर्माण योजना विस्तार ट्रस्ट, गायत्री तपोभूमि, मथुरा | इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 1 MB हैं | इस पुस्तक में कुल 25 पृष्ठ हैं | इस पेज पर आगे "ईश्वर का विराट रूप" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.

Name of the book is : Ishwar ka Virat Roop. This book is written/edited by : Pandit Shriram Sharma Acharya | The book is published by : Yug Nirman Yojana Vistar Trust, Gayatri Tapobhumi, Mathura. Approximate size of the PDF file of this book is 1 MB. This book has a total of 25 pages. The download link of the book "Ishwar ka Virat Roop" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के संपादकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
श्रीराम शर्मा आचार्य धर्म, अध्यात्म1 MB25


पुस्तक से : 

कीर्ति से प्रसन्न होना मनुष्यका स्वभाव है और यह स्वभाव अच्छे अच्छे प्रशंसनीय, श्रेष्ठ कर्म करने के लिए प्रोत्साहन करता है। शुभ कर्मों से यश प्राप्त होता है और यश से प्रसन्नता प्राप्त होती है। यश न भी मिले तो भी सत्कर्म करने के उपरांत अंतरात्मा में एक शांति अनुभव होती है।

 

कर्त्तव्यों में विभिन्नता होते हुए प्रेरणामें समता है, एक निष्ठा है, एक उद्देश्य है और यह उद्देश्य ही अध्यात्म कहलाता है। यह अध्यात्म लादा नहीं गया है, थोपा भी नहीं गया है, बल्कि प्राकृतिक होनेके कारण स्वभाव है और स्वभावको अध्यात्म कहने भी लगे हैं।

 

धर्म शब्दकी व्युत्पत्ति से ही विराट की एकता का भाव स्पष्ट हो जाता है। जो वास्तविक है उसी की धारणा रखना धर्म है। वास्तविक है - चैतन्य| यह नित्य है, अविनश्वर है, शाश्वत है। सभी धर्मोंमें आत्माके नित्यत्व को, शाश्वतपन को स्वीकार किया गया है।

 

विराट के दो विभाग हैं। एक है अंतश्चैतन्य और दूसरा है बाह्य है अंग। बाह्य अंगके समस्त अवयव अपनी-अपनी कार्य दृष्टिसे स्वतंत्र सत्ता रखते हैं। कर्त्तव्य भी उनकी उपयोगिताकी दृष्टि से प्रत्येक के भिन्न-भिन्न हैं। लेकिन ये सब हैं उस विराट अंगकी रक्षा के लिए, उस अंतश्चैतन्य को बनाए रखने के लिए।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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