ईश्वर कौन है, कहाँ है, कैसा है - श्रीराम शर्मा आचार्य पीडीऍफ़ | Ishwar Kaun Hai, Kahan Hai, Kaisa Hai - Shriram Sharma Acharya PDF

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ईश्वर कौन है, कहाँ है, कैसा है हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Ishwar Kaun Hai, Kahan Hai, Kaisa Hai Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : ईश्वर कौन है, कहाँ है, कैसा है | इस पुस्तक के लेखक हैं - पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : अखंड ज्योति संस्थान, मथुरा | इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 609 MB हैं | इस पुस्तक में कुल 642 पृष्ठ हैं | इस पेज पर आगे "ईश्वर कौन है, कहाँ है, कैसा है" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.

Name of the book is : Ishwar Kaun Hai, Kahan Hai, Kaisa Hai. This book is written by : Pandit Shriram Sharma Acharya | The book is published by : Akhand Jyoti Sansthan, Mathura. Approximate size of the PDF file of this book is 609 MB. This book has a total of 642 pages. The download link of the book "Ishwar Kaun Hai, Kahan Hai, Kaisa Hai" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
श्रीराम शर्मा आचार्य अध्यात्म, धर्म609 MB642


पुस्तक से : 

उसके अगणित क्रियाकलाप हैं जिनमें एक कार्य इस प्रकृति का विश्व व्यवस्था का संचालन भी है। संचालक होते हुए भी वह दिखाई नहीं देता क्योंकि वह सर्वव्यापी सर्वनियन्ता है। इसी गुत्थी के कारण कि वह दिखाई क्यों नहीं देता, एक प्रश्न साधारण मानवके मन में उठता है ईश्वर कौन है, कहाँ है, कैसा है?

 

एक जटिल तत्त्व दर्शन जिसमें नास्तिकताका प्रतिपादन करने वाले एक-एक तथ्यकी काट की गयी है, को कैसे सरस बनाकर व्यक्तिको आस्तिकता मानने पर विवश कर दिया जाय, यह विज्ञ जन वाङ्मयके इस खण्डको पढ़कर अनुभव कर सकते हैं । ईश्वरके संबंध में भ्रान्तियाँ भी कम नहीं हैं।

 

दमन, दण्ड और आतंकके भय से यदि ऊपर-ऊपर से किन्हीं सदाचारोंका प्रदर्शन करते रहा जाय और भीतर ही भीतर उसे मजबूरी अथवा अत्याचार समझा जाये तो उसे सच्ची सदाचार प्रवृत्ति नहीं माना जा सकता। सच्चा सदाचरण तो तब माना जायेगा जब बाह्यके साथ मनुष्यका हृदय भी उसे स्वीकार करे।

 

ईश्वर शब्द बड़ा अभिव्यंजनात्मक है। सारी सृष्टिमें जिसका एश्वर्य छाया पड़ा हो, चारों ओर जिसका सौंदर्य दिखाई देता हो, सृष्टिके हर कणमें उसकी झांकी देखी जा सकती हो, वह कितना ऐश्वर्यशाली होगा इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। इसीलिए उसे अचिन्त्य बताया गया है।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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