जीवन - निर्वाह हिन्दी पुस्तक | Jeevan Nirwah Hindi Book PDF

                                     

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जीवन - निर्वाह हिंदी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Jeevan Nirwah Hindi Book

इस पुस्तक का नाम है : जीवन - निर्वाह | इस पुस्तक के लेखक हैं : श्री सूरजभानु जी । पुस्तक का प्रकाशन किया है : हिन्दी ग्रंथ रत्नाकर कार्यालय, मुंबई | इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 12 MB हैं | पुस्तक में कुल 82 पृष्ठ हैं |

Name of the book is : Jeevan Nirwah. This book is written by : Shri Surajbhanu Ji. The book is published by : Hindi Granth Ratnakar Karyalaya, Mumbai. Approximate size of the PDF file of this book is 12 MB. This book has a total of 82 pages.

पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
श्री सूरजभानु जीधर्म,भक्ति,आध्यात्म12 MB82



पुस्तक से : 

मनुष्य ने पहले तो यह बात खोज निकाली कि खाने की वस्तुओं को अग्नि में पका लेने से पेट की पाचन शक्ति को बहुत कम काम करना पड़ता है, और थोड़ा खाने से ही इतना रस निकल जाता है जो शरीर के पोषण के लिए जरूरी होता है। इसके बाद मनुष्य ने यह भी जाना कि भोजन में थोड़ासा नमक मिलने से खाना और भी आसानी के साथ पच जाता हैं । इन बातों को जानने से मनुष्यो का पशुओं के समान दिन भर खाने का काम से छुटकारा मिल गया।

 

वचनशक्ति की बदौलत मनुष्य अपने आसपास के लोगों से  बातचीत भी करता है और इस प्रकार नये पुराने सभी मनुष्यों के अनुभव को इकट्ठा करके वह बहुत बड़ा ज्ञानी बनता चला जाता है। यदि मनुष्य में बातचीत करने की शक्ति नही होती तो वह न तो उन लोगों के अनुभवों को जान पाता जो उससे पहले हो गये हैं, और न ही वह अपने समकालीन मनुष्यों के साथ अनुभवों को साझा कर सकता। 

 

 

अनेक कठिनाइयों के पश्चात् अनाज उत्पन्न कर लेने के बाद भी आटा पीसने के लिए चक्की की आवश्यकता पड़ेगी और उसको बनाने के लिए उसे पत्थर गढ़ने का काम भी सीखना पड़ेगा। रसोई के बर्त्तनों के लिए ताँबे और पीतल की खानों से ताँबा, पीतल लाना तथा ठठेरे का काम सीखना होगा, या फिर कुम्हार का काम सीखकर मिट्टी के बर्तन बनाने पड़ेंगे।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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