जीवन विकास - सदाशिव नारायण हिन्दी पुस्तक | Jeevan Vikas - Sadashiv Narayan Hindi Book PDF

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जीवन विकास हिंदी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Jeevan Vikas Hindi Book

इस पुस्तक का नाम है : जीवन विकास | इस पुस्तक के लेखक हैं : सदाशिव नारायण । पुस्तक का प्रकाशन किया है : सस्ता साहित्य मंडल, अजमेर | इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 236 MB हैं | पुस्तक में कुल 338 पृष्ठ हैं |

Name of the book is : Jeevan Vikas. This book is written by : Sadashiv Narayan. The book is published by : Sasta Sahitya Mandal, Ajmer. Approximate size of the PDF file of this book is 236 MB. This book has a total of 338 pages.

पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
सदाशिव नारायणइतिहास,समाज236 MB338



पुस्तक से : 

अगर हमारे जीवन में कोई बात होती हुई हमें नहीं दिख रही तो इसका मतलब यह नहीं है कि वह कभी हो ही नहीं सकती। कल्पना कीजिए कि वसन्त ऋतु में, जब चारों ओर फूल ही फूल दृष्टिगोचर होते हैं, एक भौंरा पैदा होता है । वसन्त के समाप्त होने से पहले ही उसका अल्पकालिक जीवन समाप्त हो जाता है। इस प्रकार जबतक वह जीवित रहा उसके सब दिन एक पुष्प से दूसरे पुष्प पर उड़ते हुए ही बीते ऐसी दशा में पृथ्वी का पृष्ठभाग उसके लिए मानों एक सुन्दर-सुगन्धित पुष्पोद्यान ही रहा।

 

विकासवाद के अनुसार इस विश्व में आरम्भ में कुछ-न-कुछ विशुद्ध से तप्त पदार्थ ही चारों ओर भरे पड़े थे, जिनकी गति और उष्णता में कमी होते हुए बाद में उनमें से सर्वग्रहों तथा हमारी इस पृथ्वी की भी उत्पत्ति हुई । इसी प्रकार फिर जैसे-जैसे यह पृथ्वी ठण्डी होती गई, वैसे-वैसे इसपर वायु, जल आदि की उत्पत्ति हुई, और, उसके बाद, क्रमपूर्वक वनस्पति एवं प्राणियों की बहुतायत होती गई।

 

 

जिन्हें ज्यादा चलना पड़ता है उनके पैर सख्त और मजबूत होते हैं। ठोक-पीट करते-करते लुहार के हाथ कितने सख्त हो जाते हैं, यह हम सब जानते हैं। मतलब यह है कि एक ही माता-पिता के भिन्न बालकों में भी पैदायश के समय थोड़ा-बहुत अन्तर तो रहता ही है लेकिन बाद में व्यवसाय-भेद से, उसमें और वृद्धि होती जाती है।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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