काशी पंचकोशी यात्रा माहात्म्य हिन्दी पुस्तक | Kashi Panchakoshi Yatra Mahatmya Hindi Book PDF

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काशी पंचकोशी यात्रा माहात्म्य हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Kashi Panchakoshi Yatra Mahatmya Hindi Book

इस पुस्तक का नाम है : काशी पंचकोशी यात्रा माहात्म्य | इस पुस्तक के लेखक हैं : स्वामी श्री शिवानंद सरस्वती | पुस्तक के प्रकाशक हैं : स्वामी श्री शिवानंद सरस्वती, दुर्गाकुंड, वाराणसी | इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 9 MB हैं | इस पुस्तक में कुल 32 पृष्ठ हैं |

Name of the book is : Kashi Panchakoshi Yatra Mahatmya. This book is written by : Swami Shri Shivanand Saraswati. The book is published by : Swami Shri Shivanand Saraswati, Durgakund, Varanasi. Approximate size of the PDF file of this book is 9 MB. This book has a total of 32 pages.

पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
स्वामी शिवानंद सरस्वतीधर्म, भक्ति, आध्यात्म9 MB32



पुस्तक से : 

हे भवानी! जिसने काशीकी पंचक्रोशी प्रदक्षिणा दर्शन यात्रा की उसने त्रेलोक्यपावनी सातों द्वीपों, सातों समुद्रों, सम्पूर्ण पर्वतों के सहित पृथ्वीकी वह प्रदक्षिणा कर चुका. वह पुरुष निष्पाप और पुण्यवान होकर कृतार्थ और वह चौरासी लाख योनियोंसे छूटकर शिवसायुज्य-मुक्ति प्राप्त करता है। पंचकोशी दर्शन यात्रा जानेके लिए वार, तिथि, मास, काल, चन्द्र और समय का विचार नहीं करना चाहिए, क्योंकि पापोंको नाश करने वाली और मोक्ष देनेवाली पन्चकोशी वनयात्रा जाने के जिस दिन हृदयमें श्रद्धा उत्पन्न हो वही शुभ दिन, शुभ काल और वही उत्तम मुहूर्त माना जाता है।

 

जो यात्री पंचकोशी दर्शन-यात्रा में चलने में असमर्थ है, वे यात्री ऑटो, रिक्शा, कार, जीन, मिनी बस, बस आदि से पंचकोशी दर्शन-यात्रा कर सकते हैं। इनसे यात्रा करने से भी कोई दोष नहीं होता है। काशी पंचकोशी प्रदक्षिणा दर्शन-यात्रा सभी दुखोंका नाश करनेवाली और सभी पापोंको समाप्त करने वाली है। अतः प्रयत्नपूर्वक पश्चक्रोशी प्रदक्षिणा दर्शन यात्रा करनी चाहिये।

 

 

अभिप्राय यह है कि सभी यात्रियोंके सब मनोरथ पूर्ण हुए। पञ्चकोशी दर्शन-यात्रा करने वालों के प्रति श्री विश्वनाथजी की असीम अनुकम्पा रहती है, उनकी कृपासे पञ्चकोशी यात्रा कराने वाले और करने वालों का यह लोक और परलोक सुन्दर हो जाता है। जो यात्री निवृत्ति मार्ग के थे उनको अनन्य भक्ति और ब्रह्मात्मसाक्षात्कार हुआ.

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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