कौलज्ञान निर्णयः हिंदी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Kaula Gyan Nirnaya Hindi Book
इस पुस्तक का नाम है : कौलज्ञान निर्णयः | इस पुस्तक के लेखक हैं : डॉ. श्यामाकांत द्विवेदी । पुस्तक का प्रकाशन किया है : चौखंबा कृष्णदास अकादमी, वाराणसी | इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 122 MB हैं | पुस्तक में कुल 257 पृष्ठ हैं |
Name of the book is : Kaula Gyan Nirnaya. This book is written by : Dr Shyamakant Dwivedi. The book is published by : Chaukhamba Krishnadas Akadami, Varanasi. Approximate size of the PDF file of this book is 122 MB. This book has a total of 257 pages.
पुस्तक के लेखक | पुस्तक की श्रेणी | पुस्तक का साइज | कुल पृष्ठ |
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डॉ. श्यामाकांत द्विवेदी | भक्ति,धर्म | 122 MB | 257 |
पुस्तक से :
बड़ा मछंदर कल्पना मात्र था। मेरा तो विचार है कि छोटे मछंदरनाथ का माहात्म्य बढ़ाने के लिए बौद्धोंने उसी को 'अवलोकितेश्वर' का रूप माना होगा। किन्तु पीछे से गोरखनाथके प्रभाव में आ जानेके कारण यह 'सानु' माना गया। परन्तु जनसाधारण ने 'सानु' मछन्दर की पूजा न छोड़ी। यह मछंदरनाथ भी कम सिद्ध न था, परन्तु यह अपनी सिद्धताका दुरुपयोग किया करता था। व्यावहारिक योगमें यह गोरखनाथजी के गुरु थे।
नाथपरम्परा में आदिनाथ भगवान शिव शंकरके बाद सबसे महान आचार्य, सिद्ध एवं मान्यतम विभूति के रूप में मत्स्येन्द्रनाथ ही उच्चतम शीर्ष पर अवस्थित हैं। चूँकि आदिनाथ तो शिवका ही दूसरा नाम है, अतः नाथपरम्परा में मत्स्येन्द्रनाथ ही सबसे पहले आचार्य हैं और इस दृष्टिसे उन्हें नाथसम्प्रदाय का प्रवर्तक कहना भी अतिशयोक्ति नहीं होगी।
क्षीरसमुद्रके तट पर भगवान श्रीशंकरजी ने पार्वतीके कानों में न जाने कब एक बार जो उपदेश दिया था, वह क्षीरसागरकी लहरों में किसी मत्स्यके पेट में, जो मत्स्येन्द्र नाथ गुप्त थे, उनको प्राप्त हो गया। फिर वे मत्स्येन्द्रनाथ सप्त शृंगपर्वत पर चौरङ्गीनाथ से मिले, जिनके हाँथपैर नहीं थे।
(नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)
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