मध्य सिद्धांत कौमुदी (सुरेशचंद्र शास्त्री) हिन्दी पुस्तक | Madhya Siddhanta Kaumudi (Suresh Chandra Shastri) Hindi Book PDF

  

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मध्य सिद्धांत कौमुदी हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Madhya Siddhanta Kaumudi Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : मध्य सिद्धांत कौमुदी | इस पुस्तक के लेखक हैं - डॉ. सुरेशचंद्र शास्त्री | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : चौखंबा सुरभारती प्रकाशन, वाराणसी | इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 143 MB हैं | इस पुस्तक में कुल 244 पृष्ठ हैं | इस पेज पर आगे "मध्य सिद्धांत कौमुदी" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.

Name of the book is : Madhya Siddhanta Kaumudi. This book is written by : Dr. Suresh Chandra Shastri | The book is published by : Chaukhamba Surbharati Prakashan, Varanasi. Approximate size of the PDF file of this book is 143 MB. This book has a total of 244 pages. The download link of the book "Madhya Siddhanta Kaumudi" has been given further on this page from where you can download it for free.


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डॉ. सुरेशचंद्र शास्त्री धार्मिक143 MB244


पुस्तक से : 

प्रकृति-प्रत्यय विभागकी कल्पना सर्वप्रथम सुरगुरु बृहस्पति के शिष्य इन्द्रने की थी। देवराज इन्द्रसे लेकर महर्षि पाणिनि तक कई आचार्यों ने व्याकरणशास्त्र का निर्माण किया था, परन्तु आज पाणिनीय व्याकरण ही सर्वाङ्ग परिपूर्ण उपलब्ध होता है।

 

यह नितान्त भ्रमपूर्ण है। वैदिक ब्राह्मणग्रन्थों में भी श्रमण पदका उल्लेख मिलता है। इसी प्रकार सिकन्दर के भारत आगमन से भारतीय लोग यवनों से परिचित हुए। यह भी एक भ्रम ही है, क्योंकि महाभारतमें यवन सैनिकों के द्वारा युद्ध करने का प्रसङ्ग है।

 

संस्कृत भाषा भारतकी ही नहीं बल्कि पूरे विश्व की सबसे प्राचीन भाषा है। सभ्यता के उषाकाल में इस भाषा का उदय हुआ और सर्वप्रथम भारत को ही इस उदय के दर्शनका श्रेय प्राप्त हुआ। 'वेद इस संसारके प्राचीनतम ग्रन्थ हैं' इसे सभी विद्वानों ने स्वीकार किया है।

 

पाणिनीय व्याकरणका मूलग्रन्थ भगवान् पाणिनिकी 'अष्टाध्यायी' है। इस अष्टाध्यायी के माध्यम से उन्होंने संस्कृत के परिष्कृत रूपको स्थायित्व प्रदान किया। बाद मे महर्षि कात्यायन ने 'अष्टाध्यायी'की समीक्षा करते हुए उसके पूरकके रूपमें वार्तिकग्रन्थ की रचनाकी। फिर सूत्र तथा वार्तिकों के पारस्परिक समन्वयको समझाने के लिए शेषावतार भगवान् पतञ्जलिने विशद विवरणात्मक ग्रन्थ 'महाभाष्यम्' की रचना की।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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