माघ मास माहात्मय हिन्दी पुस्तक | Magh Mas Mahatmya Hindi Book PDF

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माघ मास माहात्मय हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Magh Mas Mahatmya Hindi Book

इस पुस्तक का नाम है : माघ मास माहात्मय | इस पुस्तक के लेखक हैं : अज्ञात. इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : ठाकुर प्रसाद एन्ड सन्स बुक्सेलर, वाराणसी. इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 225 MB हैं | इस पुस्तक में कुल 274 पृष्ठ हैं |

Name of the book is: Magh Mas Mahatmya | This book is written by : Unknown. This book is published by : Thakur Prasad and Sons Bookseller, Varanasi. Approximate size of the PDF file of this book is: 225 MB. This book has a total of 274 pages.

पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
अज्ञातभक्ति, धर्म225 MB274


पुस्तक से :

ऋषि बोले- हे सूतजी महाराज! आप लोकों के हितकर्ता हैं, अतएव आपने कार्तिक मासका आख्यान, जो भोग और मोक्षको देनेवाला है, हमारे प्रति वर्णन किया ॥ २ ॥ हे लोमहर्षण ! अब “माघमाहात्म्य" हमारे प्रति वर्णन करिये, जिसका श्रवण करनेसे लोकोंके उत्कट सन्देह का भी विनाश हो जाता है || ३ || हे महाभाग ! सबसे प्रथम इस लोक में माघमाहात्म्यको किसने प्रकाशित किया था, यह सब इतिहास पूर्वक वर्णन करिये.


महेश्वर बोले- अवसृथ (यज्ञान्त) स्नान करनेके अनन्तर ऋषियों द्वारा मंगलाभिषेक करने पर, नगरवासियों से पूजित हो, नगरसे बाहर निकलकर समस्त राजाओं में श्रेष्ठ, आखेटका प्रेमी राजा दिलीप कौतूहलको प्राप्त हो, मृगयाकी सेना आदि (समस्त सामग्री) को साथ ले चरणों में पादत्राण (जूते) धारण कर, नीली पगड़ी बाँध, बख्तर पहिन, गोधाचर्मके दस्ताने पहिनकरके धनुषबाण ले चले ॥ जिनकी कटिमें तरकश कस रहा है, जिन्होंने खड्ग और धनुषबाण धारण कर रक्खा है ऐसे दो-चार योद्धाओं के साथ मनोहर वनों और सघन  वनोंमें विचरने लगे | सिंहके समान पराक्रमी युवा राजा बड़े-बड़े स्रोतोंका उल्लंघन कर कुंजोंमें मृगोंका अन्वेषण करके उनके साथ क्रीडा करते थे ॥


कहीं-कहीं वृक्ष बड़े घने लग रहे थे, कहीं-कहीं बनैले पुष्पों की सुगन्धि आ रही थी, और कहीं-कहीं लतागृहों के ऊपर भ्रमर गुंजार कर रहे थे जिससे वह स्थान और भी सुशोभित था ॥ कहीं बिलों में से सर्पों की कैंचली आधी निकली पड़ी थी जिससे वे अतीव भयंकर हो रहे थे, अथच कहीं बिलों में अजगर बैठे थे, और कैंचली बाहर पड़ी थी | कहीं वनमें अग्नि लग रही है और पाषाण शिलाओंके ऊपर उसकी आभा पड़ रही है और कहीं मृग तथा व्याघ्र फूत्कार शब्द कर रहे हैं || कहीं खरगोशोंके ऊपर कुत्ते दौड़ रहे हैं और कहीं-कहीं राजा अल्प सरोवरों के ऊपर विश्राम करके फिर आगे को जाते थे.

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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