महाकाल संहिता (कामकला खंड) हिन्दी पुस्तक | Mahakal Samhita (Kamkala Khand) Hindi Book PDF

                                       

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महाकाल संहिता हिंदी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Mahakal Samhita Hindi Book

इस पुस्तक का नाम है : महाकाल संहिता | इस पुस्तक के लेखक हैं : गोपीनाथ कविराज | पुस्तक का प्रकाशन किया है : गंगानाथ झा केंद्रीय संस्कृत विद्यापीठ | इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 8.5 MB हैं | पुस्तक में कुल 368 पृष्ठ हैं |

Name of the book is : Mahakal Samhita. This book is written by : Gopinath Kaviraj. The book is published by : Ganganath Jha Kendriya Sanskrit Vidyapeeth. Approximate size of the PDF file of this book is 8.5 MB. This book has a total of 368 pages.

पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
गोपीनाथ कविराजभक्ति,धर्म8.5 MB368



पुस्तक से : 

यहां ध्यान रखना प्रावश्यक है कि स्वरूप का निमीलन तथा उन्मिलन दानों ही व्यापार पूर्ण दशा में रहते हैं किन्तु इन सब के प्रभाव से स्वरूप का निमीलन समूल उपसंहृत हो जाता है, अर्थात् संसार-चक्र आत्मा रूपी अग्नि में दग्ध होकर अभेद ज्ञान में परिवर्तित हो जाता है। उस समय स्वरूप का गोपन या निमीलन नहीं होता है। बाह्य वृति का भी उदय नहीं होता है। इस स्थिति का पारिभाषिक नाम है भावसंहार। यह उन्मत स्थिति में निर्विकल्प आत्म संवेदन के उदय होने पर प्रकाशित होता है।

 

इस विषय की आलोचना के प्रसंग में तीन प्रकार के स्तरों की धारणा करनी आवश्यक है। एक ऐसा स्तर है जहाँ सृष्टि, संरक्षण तथा संहार आदि कुछ भी नहीं है। यहाँ पूर्ण सत्य अपनी महिमा में पूर्णतः विराजमान है। यहाँ शिवशक्ति का प्रश्न ही नहीं है। जीव तथा जगत् का भी कोई प्रश्न नहीं उठता। यह एक अद्वय परम स्थिति है। इसके अतिरिक्त भी एक स्थित है।

 

 

इस यात्रा के मार्ग में अनन्त विश्व दृष्टि के सम्मुख उपस्थित होते हैं। यही महामाया का जगत है। इसके बाद महामाया का भी संसार अस्तमित हो जाता है। बिन्दु प्राप्ति के साथ साथ सद्गुरु की कृपा से माया का संसार अस्तमित होता है। इतनी दूर तक सरलगति को प्राप्त करना ही जीव का पुरुषकार है।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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