मानस रहस्य गीता प्रेस हिन्दी ग्रन्थ | Manas Rahasya Gita Press Hindi Book PDF

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मानस रहस्य हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Manas Rahasya Hindi Book

इस पुस्तक का नाम है : मानस रहस्य | इस पुस्तक के लेखक हैं : जयरामदास दीन | पुस्तक के प्रकाशक हैं : गीता प्रेस, गोरखपुर | इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 158 MB हैं | इस पुस्तक में कुल 518 पृष्ठ हैं |

Name of the book is : Manas Rahasya. This book is written by : Jairamdas Din. The book is published by : Gita Press, Gorakhpur. Approximate size of the PDF file of this book is 158 MB. This book has a total of 518 pages.

पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
जयरामदास दीन भक्ति, धर्म158 MB518



पुस्तक से : 

मानस-प्रेमी महानुभाव प्रसिद्ध रामभक्त वै० श्रीजय रामदास जी 'दीन' रामायणी के नाम से भलीभाँति परिचित हैं। आपके मानस सम्बन्धी भावपूर्ण लेख समय-समय पर 'कल्याण' में प्रकाशित होते रहे हैं, जिन्हें पाठक बड़े चाव से पढ़ते रहे हैं। 'कल्याण' के अनेक पाठक-पाठिकाओं के अनुरोध से उन्हीं में से चुने हुए ३५ लेखों का संग्रह पुस्तकरूप में मानसप्रेमी जनों की सेवा में प्रस्तुत किया जा रहा है। लेखोंमें 'मानस' के गूढ़ रहस्योंपर प्रकाश डालनेकी चेष्टा की गयी है।

 

परन्तु इतना अन्तर था कि श्रीलखनलालकी सेवा संयोगावस्था सम्बन्धी अर्थात् भजनरूपकी थी। उनको स्वामीकी सन्निधि में हुजूरीमें समस्त परिचर्या के लिये सदा तैयार रहनेका योग था और श्रीभरतजी की सेवा वियोगावस्थासम्बन्धी अर्थात् स्मरणरूप की थी जो उनकी इच्छाको दवा करके स्वीकार करायी गयी थी। अतएव परतन्त्र सेवाका आदर्श बनने से श्रीभरतजीकी निष्ठा 'विशेषतर' धर्मकी मानी गयी है।

 

 

श्रीमुखवचन है कि 'माताजी! वही पुत्र भाग्यशाली हैं, जो अपने पिता-माताका आज्ञाकारी हो । समस्त संसार में वही पुत्र दुर्लभ माना जायगा, जो अपने माता-पिता की सेवा में रत हो। इसी प्रकार वनयात्रा के समय आपने श्रीजानकीजीसे कहा कि 'सुमुखि ! मैं सौ बार शपथ करके कह रहा हूँ कि मैं तुम्हें केवल माताओंके हितके लिये ही अयोध्या में छोड़ रहा हूँ । और बारंबार दोनों हाथ जोड़कर समस्त पुरजनोंसे विनती की कि आपलोग वही उपाय कीजियेगा, जिससे हमारी सभी माताएँ हमारे विरहमें दुखी न होकर सुखी रहे.

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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