मानस शंका समाधान - गीता प्रेस हिन्दी पुस्तक | Manas Shanka Samadhan - Gita Press Hindi Book PDF

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मानस शंका समाधान हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Manas Shanka Samadhan Hindi Book

इस पुस्तक का नाम है : मानस शंका समाधान | इस पुस्तक के लेखक हैं : जयरामदास दीन | पुस्तक का प्रकाशन किया है : गीता प्रेस, गोरखपुर ने | इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 82 MB हैं | पुस्तक में कुल 164 पृष्ठ हैं |

Name of the book is : Manas Shanka Samadhan. This book is written by : Jayaramdas Din. The book is published by : Gita Press, Gorakhpur. Approximate size of the PDF file of this book is 82 MB. This book has a total of 164 pages.

पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
जयरामदास दीनभक्ति, धर्म, आध्यात्म82 MB164



पुस्तक से : 

श्रीरामचरितमानस के कथा-प्रसङ्गोंपर पाठकगण नाना प्रकार की शङ्काएँ किया करते हैं और विद्वान् लेखक तथा कथावाचकगण उनका विभिन्न प्रकारोंसे समाधान करते रहते हैं। मानस की ऐसी शङ्काओंका वैकुण्ठवासी श्रीदीनजी बड़ा सुन्दर समाधान करते थे और सुननेवालों तथा पढ़नेवालोंको उससे बड़ा संतोष होता था। इस संग्रह में ऐसी ही कुछ खास-खास शङ्काओं का समाधान प्रकाशित किया जा रहा है।

 

राजा भानुप्रतापजी के प्रसङ्गको पढ़ने पर हमें अनेक उपदेश प्राप्त होते हैं। सबसे बड़ी शिक्षा यह मिलती है कि जबतक जीवको लोकैषणा बिलकुल नष्ट नहीं हो जाती, तबतक ऊँचे चढ़ जानेपर भी उसके पतनकी सम्भावना बनी रहती है तथा उसके लिये कर्तृत्वाभिमान भी अन्य प्रकारके अहंकारोंकी भाँति ही हानिकारक और न भयंकर होता है। यदि कोई कहे कि यह सब कुछ होते हुए शुभ कर्मोंका भी भानुप्रताप जैसे सीधे और विश्वासपात्र राजा पर कपटी मुनिकी कपटभरी चाल से शापादिका आक्रमण ठीक नहीं था तो इसका उत्तर यह है कि राजा भानुप्रताप ने ही सर्वप्रथम कपटका आश्रय लिया था और वह भी एक सन्तके साथ, जो अत्यधिक अनर्थका हेतु होता है।

 

 

अनन्यभावसे चिन्तन करते हुए जो मेरे भक्त मेरी उपासना करते हैं, उन सदा मुझमें लगे रहनेवालोंके योगक्षेमका भार मैं अपने सिरपर ले लेता हूँ। इसलिये उन अनन्य दासोंके हितार्थ भगवान् जिस समय जैसी आवश्यकता समझते हैं, उसीके अनुसार अपने उन प्रपन्नोंके हित के लिये कभी उन्हें ज्ञानी से मूढ़ और चेतन से जड़ बना देते हैं एवं कभी जडसे चेतन तथा मूढ़से ज्ञानी बनाकर अपने स्वरूपका बोध देकर उन्हें निज सहज स्वरूपकी प्राप्ति करा देते हैं।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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