मानव दर्शन हिन्दी पुस्तक | Manav Darshan Hindi Book PDF

                                  

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मानव दर्शन हिंदी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Manav Darshan Hindi Book

इस पुस्तक का नाम है : मानव दर्शन | इस पुस्तक के लेखक हैं : देवकी । पुस्तक का प्रकाशन किया है : मानव सेवा संघ प्रकाशन | इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 31 MB हैं | पुस्तक में कुल 216 पृष्ठ हैं |

Name of the book is : Manav Darshan. This book is written by : Devaki. The book is published by : Manav Seva Sangh Prakashan. Approximate size of the PDF file of this book is 31 MB. This book has a total of 216 pages.

पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
देवकीसमाज31 MB216



पुस्तक से : 

प्रत्येक मानव में तीन बातें हैं, जानना, मानना और करना । जब तक इन तीनों में सामञ्जस्य रहता है तब तक मानव विकास की ओर बढ़ता रहता है। जब भी इसमें असंतुलन आता है तब मानव पराधीनता, अभाव आदि दोषों में आबद्ध हो जाता है। इस कारण यह अत्यावश्यक है कि मानव अपने जाने हुए का आदर करे । जाने हुए के प्रभाव से ही किए हुए के प्रभाव का नाश होता है, जिसके होते ही करने का राग मिट जाता है। राग-रहित होते ही सेवा, त्याग, प्रेम आदि दिव्यता की जीवन में अभिव्यक्ति स्वतः होती है।

 

जब तक मानव देखे हुए का सुख भोगता रहता है तब तक उसमें जिज्ञासा उदित नहीं होती। देखे हुए के परिणाम का प्रभाव होने पर देखने की रुचि शिथिल हो जाती है। जिसके होते ही जिज्ञासा जाग्रत होती है। जिज्ञासा के सबल तथा स्थायी होने से देखने की कामना और देखे हुए दृश्य की ममता का नाश हो जाता है। कामना का नाश होते ही परम-शान्ति और ममता का अन्त होते ही निविकारता की अभिव्यक्ति होती है।

 

 

यह सभी को मान्य होगा कि प्रत्येक मानव में किसी न किसी रूपमें, किसी न किसी के प्रति आस्था आवश्य होती है। मानव-जीवनमें जाने हुए के समान ही आस्थाका भी स्थान है, पर विवेक विरोधी आस्था सर्वथा त्याज्य है। यह आवश्यक नहीं है कि आस्था विवेक से समर्थित हो, पर यह आवश्यक है कि आस्था में विवेक का विरोध न हो।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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