मार्कण्डेय पुराण संस्कृत ग्रन्थ के बारे में अधिक जानकारी | More details about Markandey Puran Sanskrit Book
इस ग्रन्थ का नाम है : मार्कण्डेय पुराण | इस ग्रन्थ के लेखक हैं : महर्षि वेदव्यास | इस ग्रन्थ के संपादक हैं - मनसुखरायमोर. ग्रन्थ के प्रकाशक हैं : गोपाल प्रिंटिंग वर्क्स, कलकत्ता | इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 391 MB हैं | इस पुस्तक में कुल 700 पृष्ठ हैं |
Name of the book is : Markandey Puran. This book is written by : Maharshi Vedvyas. This book is edited by : Mansukhraymor. The book is published by : Gopal Printing Works, Calcutta. Approximate size of the PDF file of this book is 391 MB. This book has a total of 700 pages.
पुस्तक के लेखक | पुस्तक की श्रेणी | पुस्तक का साइज | कुल पृष्ठ |
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महर्षि वेदव्यास | धर्म, भक्ति, आध्यात्म | 391 MB | 700 |
पुस्तक से :
श्रीनन्दनन्दन वृन्दावन बिहारी भगवान् राधामुकुन्दकी असीम अनुकम्पा से गुरुमण्डल ग्रन्थमाला के 23वें पुष्प रूप से प्रथित श्रीमार्कण्डेय पुराण विद्वज्जन के करकमलों में प्रस्तुत करते हुए अतीव आनन्द हो रहा है। इस पुराण के लिये वैदेशिक विद्वानों का मत है कि यह कई स्थानों पर प्रक्षिप्तअंशों से पूर्ण है और सम्बन्धित कथाख्यानों की पूर्वापर सन्दर्भों से समीचीन सङ्गति नहीं बैठती है। सुतरां, यह पुराण महापुराणों की गणना का विषय होकर भी लक्षणोंसे उस परिभाषा के प्रकोष्ठ में समाविष्ट नहीं होता। यह पुराणों की गणना में 7वां हैं।
सर्वप्रथम धर्मसञ्हक पक्षीगणका जन्म-निरूपण, इनके पूर्वजन्मकी कथा और दिवस्पति (इन्द्र) द्वारा इन्हें शाप फिर श्रीबलरामजी की तीर्थयात्रा । द्रौपदी के पुत्रों का आख्यान, पुण्यश्लोक हरिश्चन्द्र का पवित्र चरित्र, आडीवक (गृध्र और वक) का युद्ध, पिता पुत्र का आख्यान फिर 'श्रीदत्तात्रेय की कथा, हैहय कार्तवीर्यार्जुन का महाख्यानयुक्त चरित्र निरूपित है। महासती मदालसाका अपूर्व आख्यान और चक्रवर्ती सम्राट अलर्कका चरित्र वर्णन है। आगे पुण्यमयी नव प्रकार की सृष्टिका प्रतिपादन है।
भगवती जगदम्बा आद्याशक्तिकी अनन्त महिमा भारतीय जनताकी अलौकिक श्रद्धा एवं भक्तिकी आराध्याके रूप में अनन्तकाल से सर्वतः प्रसिद्ध है। मार्कण्डेयपुराणान्तर्गत ८१ अध्याय से ६३ तक सप्तशतीका पूर्ण आख्यान है जो साङ्गोपाङ्गविधि एवं पारायण सहितश्रद्धालु भक्तोंका, तान्त्रिक समुदायका और दुर्गाभक्ति परायण महानुभावों का अत्युत्तम रजहार है। इस दुर्गासप्तशतीकी उपादेयता सर्वविदित है साथ ही इसमें वर्णित एक एक श्लोक में एक एक अक्षर के विशेष मन्त्र की प्रक्रिया है ऐसा उसके विशिष्ट मर्मज्ञों का मत है।
(नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)
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