नाथ सिद्धों की बानियां - हजारी प्रसाद द्विवेदी हिन्दी पुस्तक | Nath Siddhon ki Baniyan - Hajari Prasad Dwivedi Hindi Book PDF

                                    

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नाथ सिद्धों की बानियां हिंदी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Nath Siddhon ki Baniyan Hindi Book

इस पुस्तक का नाम है : नाथ सिद्धों की बानियां | इस पुस्तक के लेखक हैं : हजारी प्रसाद द्विवेदी । पुस्तक का प्रकाशन किया है : नागरी प्रचारिणी सभा, काशी | इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 29 MB हैं | पुस्तक में कुल 34 पृष्ठ हैं |

Name of the book is : Nath Siddhon ki Baniyan. This book is written by : Hajari Prasad Dwivedi. The book is published by : Nagari Pracharini Sabha, Kashi. Approximate size of the PDF file of this book is 29 MB. This book has a total of 34 pages.

पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
हजारी प्रसाद द्विवेदीकाव्य29 MB34




पुस्तक से : 

प्रथम दो राजा थे, इसलिये ये भी शायद राजा रहे होंगे। लेकिन इसके उलट ये भी कहा जा सकता है कि जिस प्रकार भरथरी, और गोपीचंद को स्पष्ट रूपसे राजा कहा गया है, उस प्रकार अजैपालको नहीं कहा गया, उन्हें 'बाबा अजयपाल' कहा गया है। इसलिये उनका राजा होना निश्चित नहीं है। मुझे बड़थ्वाल जी के मतमें ये जान पड़ता है कि वे चौदहवीं शताब्दीके बाद हुए होंगे।

 

कबहू क मनवी म्हारी जती रे सन्यासी। कबहू क मैंगल मातो रे लो। कबहू क मनवो म्हारो उनथि गोधलो। कबहू क बिषीया रंगि रातो रे लो। कबहू क मनवो म्हारो माया त्यागे। कबहू क बहुरि मंगावै रे लो। कबहू क मनवी म्हारी मनसा भोगी। कबहू क अभष मषावै रे लो।

 

 

लोहा की कीमति नहीं। जो कंचन कूं चाहै। गोहू के काजि तप करै। कांटि गाडर कोउ गाहै। पृथीनाथ पारस सरब घटि घट भीतर लोह। बिम्ह भगति क्यूं ऊपजै। जिन्हहि विषय का मोह। पृथीनाथ घर का दंद मैं आपु गंवांया जांहि।

 

अकथ अनिछर बंधन मुकता। पुस्तकि लिष्या न बाणीं। देवनि दुरलभ नांही अगोचर । परचे गुर-मुषि जांणीं। बाहरि कहीं तो गुरू न घोजै । भीतर कहूँ न होई। बाहर भीतर श्रब निरंतरि । बिरला चोन्हत कोई।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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