पांडुलिपि विज्ञान हिन्दी पुस्तक | Pandulipi Vigyan Hindi Book PDF

                                  

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पांडुलिपि विज्ञान हिंदी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Pandulipi Vigyan Hindi Book

इस पुस्तक का नाम है : पांडुलिपि विज्ञान | इस पुस्तक के लेखक हैं : डॉ. सत्येन्द । पुस्तक का प्रकाशन किया है : राजस्थान हिंदी ग्रंथ अकादमी, जयपुर | इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 8 MB हैं | पुस्तक में कुल 426  पृष्ठ हैं |

Name of the book is : Pandulipi Vigyan. This book is written by : Dr Satyendra. The book is published by : Rajasthan Hindi Granth Akadami, Jaipur. Approximate size of the PDF file of this book is 8 MB. This book has a total of 426 pages.

पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
डॉ. सत्येन्दइतिहास8 MB426



पुस्तक से : 

लेखन और उसके बाद ग्रन्थ रचना का जन्म भी आदिम आनुष्ठानिक पर्यावरण मे हुआ प्रतीत होता है। रेखांकन से लिपिविकास तक के मूल में यही है और उसके आगे ग्रन्थ-रचना में भी। प्राचीनतम ग्रन्थो में भारत के वेद और मिस्र की 'मृतकों की पुस्तक' आती हैं। वेद बहुत समय तक मौखिक रहे और उन्हें लिपिबद्ध करने का निषेध भी रहा। पर मिस्र के पेपीरम के खरीतो में लिखे ये ग्रन्थ समाधियो मे दफ्नाये हुए मिले हैं। इन दोनो ही प्राचीन रचनाओं का सम्बन्ध धर्म और उनके अनुष्ठानो से रहा है।

 

उसके सघर्ष के अवशेष इतिहास के काल क्रम में दबे मिल ही जाते हैं। उनसे मनुष्य को संघर्ष कथा का बाह्य साक्ष्य मिलता है। ऐसे प्रत्येक आदिम उपादानों के साथ सहस्राब्दियों का इतिहास जुड़ा हुआ है। इन अवशेषो के माध्यमसे इतिहासकार उन प्राचीन सहस्राब्दियो का साक्षात्तकार वल्पना के सहारे करता है। उन्ही के आधार पर वह प्राचीन मानव के मन एवं मस्तिष्त्र, विचारो और आस्थाओं के सूत्र तैयार करता है |

 

 

इनमें से प्रत्येक का अपना अलग इतिहास है, सबके निर्माण की अपनी कला है, और सबको समझने का एक विज्ञान भी है। लिपिक का एक अलग महत्व है। लेखक जब ग्रन्थ-रचना करता है, तब वह अपना लिपिक भी होता है क्योकि वह स्वयं लिखकर ग्रन्थ प्रस्तुत करता है। लेखकके अपने हाथ से लिखे ग्रन्थ का अपने आपमे ऐतिहासिक महत्त्व है।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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