प्रमाणवार्त्तिकम् पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Pramanavarttika Book
इस पुस्तक का नाम है : प्रमाणवार्त्तिकम् | इस पुस्तक के लेखक/संपादक हैं : स्वामी द्वारिका दास शास्त्री । पुस्तक का प्रकाशन किया है : बौद्ध भारती, वाराणसी | इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 259 MB हैं | पुस्तक में कुल 532 पृष्ठ हैं |
Name of the book is : Pramanavarttika. This book is written/composed by : Swami Dwarika Das Shastri. The book is published by : Bauddha Bharati, Varanasi. Approximate size of the PDF file of this book is 259 MB. This book has a total of 532 pages.
पुस्तक के लेखक | पुस्तक की श्रेणी | पुस्तक का साइज | कुल पृष्ठ |
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स्वामी द्वारिका दास शास्त्री | धर्म,भक्ति | 259 MB | 532 |
पुस्तक से :
ननु यदि सविज्ञानकायत्वात् तथा भूतजननानुमानेन परलोकसिद्धिः, तदा ‘मरणचित्तत्वाच्चित्तान्तराप्रतिसन्धानमर्हच्चरमचित्तवत्' इति कस्मान्नानुमीयते ? इत्याह चित्तान्तरस्य सन्धाने को विरोधोन्त्यचेतसो मरणचित्तस्य | न कश्चित् । तथा हिन तावन्मरणचित्तेन चित्तान्तरसन्धानस्य सहानवस्थानलक्षणो विरोधः, निवर्त्यनिवर्तकत्वाभावात् । नापि परस्परपरिहारस्थितिलक्षणः अमरण चित्तव्यवच्छेदेन मरणचित्तस्यावस्थानात् ।
नन्वचेतनत्वं किमिन्द्रियज्ञानरहितत्वम् ? उत मनोज्ञानविमुक्तत्वम्? तत्राद्य मिष्टमेव, इन्द्रियस्याभावे तज्ज्ञानाभावात्, साध्या विशिष्टत्वं हेतोः, मनो ज्ञानस्यैव साध्यत्वात् ? उच्यते; यथा स्पर्शादयः स्पर्शज्ञानेन चेतयन्ते, न तथा नखकेशादय इत्यचेतनाः। चेतनाप्रतिबद्धं च मनोविज्ञानं तदभावे न स्यात् ।
दोषैर्वातादिभिर्विगुणीकृतो देहो न हेतुश्चैतन्यस्य प्राणापानादेश्च, वर्ज्या दिवद् यदि यथा विगुणीकृतो वर्त्त्यादिर्न दीपस्य हेतुः । तदामृते शरीरे चैतन्या दिनाशान्मृतस्य शमीभवन्ति दोषा इति शमीकृते विकारविकारिण्यारोग्य लाभाद्धेतोर्देहस्य पुनरुज्जीवनं प्राणापानं चैतन्योत्पत्तिलक्षणं भवेत् ॥
(नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)
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