प्राणायाम प्रयोग विधि हिन्दी पुस्तक | Pranayam Prayog Vidhi Hindi Book PDF

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प्राणायाम प्रयोग विधि हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Pranayam Prayog Vidhi Hindi Book

इस ग्रन्थ का नाम है : प्राणायाम प्रयोग विधि | इस पुस्तक के लेखक/संपादक हैं : स्वामी जगदीशानंद सरस्वती. इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : अज्ञात. इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 13 MB हैं | इस पुस्तक में कुल 24 पृष्ठ हैं |

Name of the book is: Pranayam Prayog Vidhi | This book is written by : Swami Jagadishanand Saraswati. This book is published by : Unknown. Approximate size of the PDF file of this book is: 13 MB. This book has a total of 24 pages.

पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
स्वामी जगदीशानंद सरस्वतीयोग, स्वास्थ्य13 MB24


पुस्तक से 

यदि जीवन दीर्घ न हो तो अल्प समय में ज्ञान कैसे प्राप्त हो सकता है ? मनुष्यको ऐसा यत्न करना उचित है जिसमें जीवन दीर्घ और आनन्दपूर्ण हो। जिस जीवन में आनन्द नहीं वह जीवन वृथा है । संसार के सभी जीवधारियों का जीवन श्वास-प्रश्वास के आवागमन पर है। बाहर के अपान वायु को भीतर ले जाना श्वास कहाता है और भीतर के प्राणवायु को बाहर निकाल कर फेंकना प्रश्वास कहाता है। जिस समय श्वास-प्रश्वास का आवागमन रुक जाता है उसी समय जीवन की समाप्ति समझी जाती है।

 

यह मनुष्य शरीर अत्यन्त दुर्लभ है न मालूम कि कितने पुण्यके प्रभाव से कितने योनियोंको भ्रमण करते हुए इस मनुष्य शरीरको प्राप्त किया जाता है। ऐसे दुर्लभ शरीर को पा यदि मनुष्य विषय-भोगमें लिप्त रहे और दीर्घ जीवन प्राप्त करनेके लिए कोई यत्न नहीं करे तो इससे बढ़कर और अज्ञानता क्या हो सकता है। वह इन्द्र-सा वैभव किस काम का है जिसके भोगने में हम असमर्थ हो। हम नाना प्रकारके अपकर्म करके सुख भोगनेके लिये धन इकट्ठा करते हैं परन्तु हम उसका उपयोग करने नहीं पाते, इसका कारण प्रत्यक्ष है कि हमने दीर्घ जीवन प्राप्त के लिये कुछ यत्न नहीं किया और पापकी गठरी अपने सिर पर लाद लिया। मधुमक्खी अपने छत्ते में मधु इकट्ठा करती है किन्तु उसका उपभोग दूसरे के लिये होता है.

 


हमलोगों का कर्म इतना बिगड़ गया है कि अविद्या के अन्धकार में पड़कर ऐसे घर रत्नों की खबर ही नहीं रखते; यदि खबर भी हो तो उसे व्यर्थ कहकर टाल देते हैं। बहुतेरे भारतीय कहते हुए पाये जाते हैं कि योग किया बहुत कठिन है, यह घर में रहकर हो ही नहीं सकती, इसके लिये जंगल ही उपयुक्त स्थान है। वह यह नहीं सोचते कि मैंने भोग-विलास की सामग्रियों जो कुछ इकट्ठी कर रखे हैं, क्या बिना दीर्घजीवी हुए इसका आनन्द प्राप्त हो सकता है? आलस्य के वशीभूत ऐसे हो गये हैं कि सन्ध्या, प्राणायाम जो हमारे धर्मका प्रधान अंग है इसे निरर्थक समझते हैं।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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