प्रेम भक्ति प्रकाश हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Prem Bhakti Prakash Hindi Book
इस पुस्तक का नाम है : प्रेम भक्ति प्रकाश | इस पुस्तक के लेखक हैं : श्री जयदयाल गोयन्दका | पुस्तक के प्रकाशक हैं : गीता प्रेस, गोरखपुर | इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 15 MB हैं | इस पुस्तक में कुल 24 पृष्ठ हैं |
Name of the book is : Prem Bhakti Prakash. This book is written by : Shri Jaydayal Goyandka. The book is published by : Gita Press, Gorakhpur. Approximate size of the PDF file of this book is 15 MB. This book has a total of 24 pages.
पुस्तक के लेखक | पुस्तक की श्रेणी | पुस्तक का साइज | कुल पृष्ठ |
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जयदयाल गोयन्दका | धर्म, भक्ति | 15 MB | 24 |
पुस्तक से :
रे दुष्ट मन कपटभरी प्रार्थना करनेसे क्या अन्तर्यामी भगवान् प्रसन्न हो सकते हैं? क्या वे नहीं जानते कि ये सब तेरी प्रार्थनाएँ निष्काम नहीं हैं एवं तेरे हृदयमें श्रद्धा, विश्वास और प्रेम कुछ भी नहीं है? यदि तेरेको यह विश्वास है कि भगवान् अन्तर्यामी हैं तो फिर किसलिये प्रार्थना करता है? बिना प्रेमके मिथ्या प्रार्थना करनेसे भगवान् कभी नहीं सुनते और यदि प्रेम है तो फिर कहनेसे प्रयोजन ही क्या है?
हे इन्द्रियो! तुमको नमस्कार है, तुम भी जाओ, जहाँ वासना होती है वहाँ तुम्हारा टिकाव होता है। मैंने हरिके चरणकमलोंका आश्रय लिया है, इसलिये अब तुम्हारा दाव नहीं पड़ेगा। हे बुद्धे! तेरेको भी नमस्कार है, पहले तेरा ज्ञान कहाँ गया था जब कि मेरे को संसारमें डूबनेके लिये शिक्षा दिया करती थी? क्या वह शिक्षा अब लग सकती है ?
कहाँ काम, कहाँ क्रोध, कहाँ लोभ, कहाँ मोह, कहाँ मद, कहाँ मत्सरता, कहाँ मान, कहाँ क्षोभ, कहाँ माया, कहाँ मन, कहाँ बुद्धि, कहाँ इन्द्रियाँ, सर्वत्र एक सच्चिदानन्द-ही-सच्चिदानन्द व्याप्त है। अहो। अहो। सर्वत्र एक सत्यरूप, चेतनरूप, आनन्दरूप, घनरूप, पूर्णरूप, ज्ञानरूप, कूटस्थ, अक्षर, अन्यक्त, अचिन्त्य, सनातन परब्रह्म, परम, अक्षर, परिपूर्ण अनिर्देश्य, नित्य, सर्वगत, अचल, ध्रुव, अगोचर, मायातीत, आनन्द परमानन्द, महानन्द, आनन्द-ही-आनन्द आनन्द-ही-आनन्द परिपूर्ण है, आनन्दसे भिन्न कुछ भी नहीं है ॥
(नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)
डाउनलोड लिंक :
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