प्रेम सत्संग सुधा माला - गीता प्रेस हिन्दी पुस्तक | Prem Satsang Sudha Mala - Gita Press Book PDF

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प्रेम सत्संग सुधा माला हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Prem Satsang Sudha Mala Hindi Book

इस ग्रन्थ का नाम है : प्रेम सत्संग सुधा माला | इस ग्रन्थ के लेखक हैं - अज्ञात | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : गीता प्रेस, गोरखपुर | इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 54 MB हैं | इस पुस्तक में कुल 206 पृष्ठ हैं |

Name of the book is : Prem Satsang Sudha Mala. This book is written by : Unknown | The book is published by : Gita Press, Gorakhpur. Approximate size of the PDF file of this book is 54 MB. This book has a total of 206 pages.



पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
गीता प्रेस, गोरखपुर भक्ति, धर्म54 MB206


पुस्तक से : 

आपका मन जहाँ है, वहीं आप हैं — इस बात को गाँठ बाँधकर याद कर लें। यहाँ बैठे हुए आप यदि कलकत्ते की दूकान का चिन्तन करते हैं तो आप असल में कलकत्ते ही हैं । इसी प्रकार यदि शरीर यहाँ है, पर मन शरीरको छोड़कर दिव्य वृन्दावन - धामकी लीलामें है तो आप वृन्दावनधाम में ही हैं। प्रारब्ध पूरा होने पर शरीर गिर जायगा और आप सदाके लिये उसी लीलामें सम्मिलित हो जायेंगे । सबकुछ आपकी इच्छा पर निर्भर है।

 

धीरे-धीरे मनकी बदमाशी मिटानी ही पड़ेगी। आप देखें, मन तो जैसे आज बदमाशी कर रहा है, अंत समय और भी अधिक बदमाशी कर सकता है तथा पता नहीं कब किस संग में फँसकर मन पर कैसा रंग चढ़ जाय। अतः उसके पहले ही मन की बदमाशी को पूरी तरह मिटा दें।

 

अनादिकाल से विषयोंके संस्कार मनमें हैं और विषयों की इच्छा होती है । प्रत्येक विषय की कामना के साथ ही मन उसकी पूर्ति के लिये व्याकुल होता है। पूर्ति हुई, व्याकुलता मिटी । पर यह मिटेगी थोड़ी देर के लिये ही; क्योंकि उतनी देर तक आत्माकी छाया मन पर पड़ी थी । जैसे हिलते हुए दर्पण में मुख नहीं दीखता, स्थिर होनेपर दीखने लग जाता है, वैसे ही चञ्चल मनमें आत्माका सुख प्रतिबिम्बित नहीं होता।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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