पुरुषोत्तम मास माहात्मय हिन्दी ग्रन्थ | Purushottam Mas Mahatmya Hindi Book PDF

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पुरुषोत्तम मास माहात्मय हिन्दी ग्रन्थ के बारे में अधिक जानकारी | More details about Purushottam Mas Mahatmya Hindi Book

इस पुस्तक का नाम है : पुरुषोत्तम मास माहात्मय | इस पुस्तक के लेखक हैं : अज्ञात. इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : भार्गव पुस्तकालय, वाराणसी. इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 192 MB हैं | इस पुस्तक में कुल 272 पृष्ठ हैं |

Name of the book is: Purushottam Mas Mahatmya | This book is written by : Unknown. This book is published by : Bhargav Pustakalaya, Varanasi. Approximate size of the PDF file of this book is: 192 MB. This book has a total of 272 pages.

पुस्तक के लेखकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
अज्ञातभक्ति, धर्म192 MB272


पुस्तक से :

श्रीविष्णु बोले। हे वत्स ! योगियोंको जो दुर्लभ गोलोक है वहाँ मेरे साथ चलो जहाँ भगवान् श्रीकृष्ण पुरुषोत्तम रहते हैं ॥ ९ ॥ गोपियोंके समुदाय के मध्य में स्थित दो भुजा वाले, मुरली को धारण किये, मेघ के समान श्याम, लाल कमल के सदृश नेत्रवाले, ॥ १० ॥ शरत्पूर्णिमा के चन्द्रमा के समान अति सुन्दर मुखवाले, नवीन करोड़ों कामदेवके समान लावण्ययुक्त, मनोहर लीलाके धाम, ॥ ११ ॥ पीताम्बर धारण किये हुए, माला पहिने, बनमाला से विभूषित, उत्तम रत्नाभरण धारण किये हुए, प्रेम के भूषण, भक्तोंके ऊपर कृपा रखने वाले ॥ १२ ॥ चन्दन चर्चित सर्वाङ्ग, कस्तूरी-केशर से युक्त, वक्षस्थल में श्रीवत्स चिह्न से शोभित, कौस्तुभ मणिसे विराजित ॥ १३ श्रेष्ठ रत्नों के सार से रचित उज्वल किरीटकुण्डलधारी, रत्नोंके सिंहासन पर बैठे हुए, पार्षदगणों से घिरे हुए ॥ १४ ॥ वही पुराण पुरुषोत्तम परंब्रह्म हैं। स्वेच्छामय, समस्त ब्रह्माण्ड के बीज, सबके आधार पर से भी पर ॥ १५ ॥ चेष्टारहित, निर्विकार, परिपूर्णतम, प्रभु, माया से परे, ईशान, गुणरहित, नित्यशरीर ॥ १६ ॥ ऐसे प्रभु जिस गोलोकमें रहते हैं वहाँ हम दोनों चलते हैं वहाँ श्रीकृष्णचन्द्र तुम्हारा दुःख दूर करेंगे।


तीन करोड़ योजन का चारो तरफ विस्तार है, मण्डल की तरह उस गोलोककी आकृति है, बड़े भारी तेज के समान उसका स्वरूप है, उसकी भूमि रत्नमय है ॥ २१ ॥ योगियों द्वारा भी स्वप्नमें अदृश्य है, विष्णुके भक्तोंसे गम्य और दृश्य है। ईश्वरने योगद्वारा उसे धारण कर रखा है. अन्तरिक्षमें वह उत्तम लोक स्थित है ॥ २२ ॥ आघि, व्याधि, बुढ़ापा, मृत्यु, शोक, भय आदि से रहित है. श्रेष्ठ रत्नों से भूषित असङ्ख्य मकानों से शोभित है ॥ २३ ॥ उस गोलोकके नीचे पचास करोड़ योजनके विस्तार के भीतर दहिने वैकुण्ठ और बाँयें वैकुण्ठ के समान मनोहर शिवलोक स्थित है ॥ २४ ॥ एक करोड़ योजनविस्तार का मण्डलाकृति वैकुण्ठ शोभित है, वहाँ सुन्दर पीताम्बरघारी वैष्णव रहते हैं ॥ २५ ॥ उस वैकुण्ठके रहनेवाले शङ्ख, चक्र, गदा, पद्म धारण किये हुए लक्ष्मीके सहित चतुर्भुज हैं। उस बैकुण्ठमें रहनेवाली स्त्रियाँ बजते हुए नूपुर और करधनी धारण किये सब लक्ष्मीके समान रूपवती हैं.


यह अधिमासत्रत सम्पूर्ण साधनों में श्रेष्ठ साधन है और समस्त कामनाओंके फल की सिद्धि को देनेवाला है। अत: इस पुरुषोत्तमका व्रत करो ॥ १९ ॥ खेत में बोये हुए बीज जैसे करोड़ों गुणा बढ़ते हैं वैसे ही मेरे पुरुषोत्तम मासमें किया हुआ पुण्य करोड़ों गुणा अधिक होता है ॥ २० ॥ कोई चातुर्मास्यादि यज्ञ करने से स्वर्गमें जाते हैं परन्तु वह भी भोगोंको भोग कर फिर पृथ्वी पर आते हैं ॥ २१ ॥ और जो पुरुष आदरसे विधिपूर्वक अधिमास का व्रत करता है वह तो अपने कुल भर का उद्धार कर मेरेमें मिल जाता है इसमें सन्देह नहीं है ॥ २२ ॥

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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