रस तरंगिणी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Rasa Tarangini Hindi Book
इस पुस्तक का नाम है : रस तरंगिणी | इस ग्रन्थ के के मूल लेखक हैं - भानुदत्त | इस रचना के अनुवादक हैं : श्री गोपालदत्त जोशी. इस पुस्तक के संपादक हैं : देवदत्त कौशिक | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : मुंशीराम मनोहरलाल पब्लिशर्स प्राइवेट लिमिटेड, नई दिल्ली | इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 132 MB हैं | इस पुस्तक में कुल 272 पृष्ठ हैं |
Name of the book is : Rasa Tarangini. Original author of this book is : Bhanudutta | Translation of the composition is done by : Shri Gopal Dutta Joshi | Editor of the book is : Devdutta Kaushik | The book is published by : Munshiram Manoharlal Publishers Private Limited. Approximate size of the PDF file of this book is 132 MB. This book has a total of 272 pages.
पुस्तक के लेखक/संपादक | पुस्तक की श्रेणी | पुस्तक का साइज | कुल पृष्ठ |
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देवदत्त कौशिक | साहित्य, काव्य | 132 MB | 272 |
पुस्तक से :
'रसतरङ्गिरणी' भानुदत्त का लोकख्यात संस्कृत काव्यशास्त्रीय ग्रन्थ है जिसमें भरत में लेकर लगभग 15वीं शताब्दी तक के रस-चिन्तकों की शास्त्रीय चिन्तना का समाहार-शैली में अभूतपूर्व उपस्थान तो हुआा ही है, स्वयं इसके रचयिता की कतिपय मौलिक उद्भावनाओं ने भी रसशास्त्र की प्रतिष्ठामें अद्भुत योगदान किया है।
आधुनिक युग में विभिन्न भारतीय विश्वविद्यालयों में हिन्दी के रीति कालीन काव्यशास्त्र पर बहुत अधिक अनुसन्धान हो रहा है। अतः शोधार्थीका इस ग्रन्थ से पूर्णत: परिचित होना आवश्यक है। जो विषय उसके अनुसंधान का आधार है, स्वयं उसके ही आधारकी उपेक्षा की भी कैसे जा सकती है ?
भानुदत्त का रचना-काल 16वीं शताब्दी में निश्चित है। इधर हिन्दी साहित्य का उत्तर मध्ययुग, अर्थात् रीतिकाल, 16वीं से 19वीं शताब्दीके अन्तिम चरण तक फैला हुआ है जिसमें अनेक शास्त्रनिष्ठ प्राचार्यों ने अपने रीति-ग्रन्थों का निर्माण किया। इन ग्रन्थोंके अधिकांश का सीधा सम्बन्ध प्रत्यक्षतः रस चिन्तन से है।
इस युग पर जिन संस्कृत ग्रन्थोंका अपरिमित प्रभाव पड़ा है उनमें 'काव्यप्रकाश', 'साहित्यदर्पण', 'चन्द्रालोक', 'कुवलयानन्द', 'रसमञ्जरी' और 'रसतरङ्गिणी' का नाम मुख्यतः लिया जाता है। इनमेंसे 'काव्यप्रकाश' और 'साहित्य दर्पण का काव्यके सर्वाङ्ग, ‘रसमञ्जरी' का नायिका-भेद-निरूपण और 'चन्द्रालोक' तथा 'कुवलयानन्द' का उपयोग अलङ्कार-विवेचनके लिए किया गया है।
(नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)
डाउनलोड लिंक :
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