संक्रामक रोग चिकित्सा हिंदी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Sankramak Rog Chikitsa Hindi Book
इस पुस्तक का नाम है : संक्रामक रोग चिकित्सा | इस पुस्तक के लेखक हैं : ओ. पी. वर्मा । पुस्तक का प्रकाशन किया है : निर्मल आयुर्वेद संस्थान, अलीगढ़ | इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 27 MB हैं | पुस्तक में कुल 343 पृष्ठ हैं |
Name of the book is : Sankramak Rog Chikitsa. This book is written by : O. P. Verma. The book is published by : Nirmal Ayurved Sansthan, Aligarh. Approximate size of the PDF file of this book is 27 MB. This book has a total of 343 pages.
पुस्तक के लेखक | पुस्तक की श्रेणी | पुस्तक का साइज | कुल पृष्ठ |
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ओ. पी. वर्मा | आयुर्वेद,स्वास्थ्य | 27 MB | 343 |
पुस्तक से :
कुछ ही विपाणु शरीरमे रोग उत्पन्न करते हैं। ये जीवाणुओ की अपेक्षा ज्यादा सूक्ष्म होते हैं। विषाणु भी जीवाणुओ की तरह कई आकृतियों में पाये जाते है। इनमे छड़ीनुमा, गोलाकर आदि आकृति के विपाणु अधिक देखनेको मिलते है । विषाणु इतने ज्यादा सूक्ष्म होते है कि ये सूक्ष्मदर्शी से देखने पर भी दिखाई नही देते हे । अतः इनका पता लगाने हेतु विशेष यन्त्र "इलेक्ट्रान सूक्ष्मदर्शी" का प्रयोग करते है। इनका आकार १० से ५० मिली माईक्रान्स तक होता है। विषाणु न्युक्लिक एसिड के बने होते हैं।
उपर्युक्त उपायो के असफल होने पर अर्थात् जीवाणुओं के शरीर में प्रवेश कर जाने पर एक और क्रिया जीवाणुओको नष्ट करनेमें सक्षम होती है जिसे प्रतिरक्षी कहते है। अधिकतर जीवाणु अपने को श्वेत रुधिराणुओं से बचाने के लिए अपने ऊपर एक कड़े पदार्थका दुर्ग बना लेती है। प्रतिरक्षी ऐसे दुर्गको नष्ट करनेमे सफल होते है। इससे श्वेत रुधिरण के लिए उन्हें हजम कर समाप्त करनेका अवसर मिल जाता है।
रोगीको स्वस्थ व्यक्ति से पृथक करना ही पृथक्करण कहा जाता है। इस हेतु निवास स्थान पर ही व्यवस्था की जाती है। यदि निवास स्थान पर सम्भव न हो तो चिकित्सालय मे व्यवस्था की जाती है। पृथक कक्षकी व्यवस्था की जाती है। कक्ष वायु-प्रकाश से युक्त होना चाहिए। केवल आवश्यक वस्तुये ही कक्षमें रहनी चाहिए।
(नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)
डाउनलोड लिंक :
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