षड्दर्शन समुच्चय हिंदी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Shad Darshan Samuchchaya Hindi Book
इस पुस्तक का नाम है : षड्दर्शन समुच्चय | इस पुस्तक के लेखक हैं : आचार्य हरिभद्र सूरि | पुस्तक का प्रकाशन किया है : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन | इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 88 MB हैं | पुस्तक में कुल 574 पृष्ठ हैं |
Name of the book is : Shad Darshan Samuchchaya. This book is written by : Acharya Haribhadra Suri. The book is published by : Bharatiya Gyanpeeth Prakashan. Approximate size of the PDF file of this book is 88 MB. This book has a total of 574 pages.
पुस्तक के लेखक | पुस्तक की श्रेणी | पुस्तक का साइज | कुल पृष्ठ |
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आचार्य हरिभद्र सूरि | भक्ति,धर्म | 88 MB | 574 |
पुस्तक से :
मुँह में झुर्रियाँ तथा बालों में सफेदी लानेवाले वृद्धावस्था आदि अवस्थाओं का होना असम्भव हो जायेगा, क्योंकि ये सब काल के प्रतिनियत विभाग से ही संबंधित हैं । काल न हो तो यह सब अव्यवस्थित हो जायेगा। परन्तु इनकी अव्यवस्था न तो अनुभव में आती है और न इष्ट ही है। मूंग की दाल का परिपाक भी कालक्रम से ही होता है। यदि कालके बिना ही परिपाक हो जाय तो बटलोई ईंधन आदि सामग्री के मिलते ही प्रथम क्षण में ही दाल पक जानी चाहिए।
इस नियति से ही सभी पदार्थ नियत रूप में उत्पन्न होते हैं अनियत रूप में नहीं। जो जिस समय जिससे उत्पन्न होता है वह उस समय उससे नियतरूप में ही उत्पत्ति लाभ करता है। यदि नियत तत्त्व न हो तो संसार से कार्यकारण की व्यवस्था तथा पदार्थों के अपने निश्चित स्वरूप की व्यवस्था ही भंग हो जायगी।
सा चामुनोपायेन द्रष्टव्या पुण्यापुण्यर्वाजतशेषजीवाजी वादिपदार्थसप्तकन्यासः, तस्य चाघः प्रत्येकं स्वपर विकल्पोपादानम्, असत्त्वादात्मनो नित्यानित्य विकल्पौ न स्तः, कालादीनां पञ्चानामधस्तात्षष्ठी यदृच्छा न्यस्यते । इह यदृच्छावादिनः सर्वेऽप्य क्रियावादिनस्ततः प्राग्यदृच्छा नोपन्यस्ता।
(नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)
डाउनलोड लिंक :
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