श्री भगवन्नाम चिंतन हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Shri Bhagvannam Chintan Hindi Book
इस पुस्तक का नाम है : श्री भगवन्नाम चिंतन | इस पुस्तक के लेखक हैं - श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार जी | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : गीता प्रेस, गोरखपुर | इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 60 MB हैं | इस पुस्तक में कुल 245 पृष्ठ हैं |
Name of the book is : Shri Bhagvannam Chintan. This book is written by : Shri Hanuman Prasad Poddar ji | The book is published by : Gita Press, Gorakhpur. Approximate size of the PDF file of this book is 60 MB. This book has a total of 245 pages.
पुस्तक के लेखक | पुस्तक की श्रेणी | पुस्तक का साइज | कुल पृष्ठ |
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हनुमान प्रसाद पोद्दार | भक्ति, धर्म | 60 MB | 245 |
पुस्तक से :
प्रस्तुत संग्रह श्रद्धेय भाईजी श्रीहनुमान प्रसादजी पोद्दार के भगवन्नाम-विषयक लेखों, विचारों, पत्रों आदिका संग्रह है, जो समय-समयपर 'कल्याण' में प्रकाशित हुए थे। श्रीभांईजी उस भांगवतीय स्थिति में पहुँच गये थे जहाँ पहुँचे हुए व्यक्ति के जीवन से, वाणी से, लेखनी से परमार्थ के साधकों को ही नहीं, मानवमात्रको अमोघ लाभ मिलता है.
नामका जप मानसिक, उपांशु और वाचिक- तीनों तरहसे हो सकता है । नाम-जपमें जितनी सूक्ष्मता हो, उतना ही वह श्रेष्ठ है । पर नाम-कीर्तनमें जितना ही वाणीका स्पष्ट उच्चारण और उद्घोष हो, उतना ही श्रेष्ठ है । अपनी-अपनी स्थिति और रुचिके अनुसार जप कीर्तन करना चाहिये।
रूप नाम के अधीन ही देखा जाता है। किसी के हाथ में हीरा है; परंतु जबतक उस हीरे को वह हीरा नहीं समझता तबतक उसे रूप का ज्ञान नहीं होता । रूपका ज्ञान हुए बिना वह उसका मूल्य नहीं जानता। जब किसी जौहरी से उसका नाम 'हीरा' जान लेता है तभी उसे उसकी बहुमूल्यता का ज्ञान होता है। इससे यह सिद्ध हो गया कि नामका स्मरण हुए बिना नामीका ज्ञान नहीं होता। नामका कुछ दिनोंतक स्मरण करने पर, साधकके अन्तरमें जो एक आनन्दका सरोवर बँधा पड़ा है उसका बांध टूट जाता है, वह सुखकी प्रबल धारा में बह जाता है।
(नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)
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