श्री नेत्र तंत्र हिंदी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Shri Netra Tantra Hindi Book
इस पुस्तक का नाम है : श्री नेत्र तंत्र | इस पुस्तक के लेखक हैं : आचार्य राधेश्याम चतुर्वेदी । पुस्तक का प्रकाशन किया है : चौखंबा सुरभारती प्रकाशन, वाराणसी | इस पुस्तक की पीडीएफ फाइल का कुल आकार लगभग 85 MB हैं | पुस्तक में कुल 608 पृष्ठ हैं |
Name of the book is : Shri Netra Tantra. This book is written by : Acharya Radheshyam Chaturvedi. The book is published by : Chaukhamba Surbharati Prakashan, Varanasi. Approximate size of the PDF file of this book is 85 MB. This book has a total of 608 pages.
पुस्तक के लेखक | पुस्तक की श्रेणी | पुस्तक का साइज | कुल पृष्ठ |
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आचार्य राधेश्याम चतुर्वेदी | तंत्र,भक्ति | 85 MB | 608 |
पुस्तक से :
ग्रन्थ में आचार्य की विशेषताओं का वर्णन करते हुए कहा गया है कि योग्य आचार्य द्वारा प्रदत्त मन्त्र ही मोक्षप्रद होते हैं। आचार्य तीन प्रकार के होते हैं—कर्मी, योगी तथा ज्ञानी। इनमें ज्ञानी गुरु सर्वश्रेष्ठ होते है। ऐसे गुरु के द्वारा दीक्षित शिष्यके समस्त पाप धुल जाते हैं और वह परमपदको प्राप्त होता है। निर्मल आचार्य के द्वारा प्रदत्त मन्त्र भी निर्मल होते हैं। अन्त में यह बताया गया है कि शिष्यका कर्तव्य है कि वह भक्तिभावसे अपने गुरुकी पूजा करें।
इसी क्रम में त्रिविध योग की व्याख्या करते हुए यह कहा गया है कि इनमें से किसी भी एक योगसे शरीरत्याग होनेपर प्राणीका कल्याण ही होता है। मन्त्रका प्रयोग शास्त्रनिर्दिष्ट और उचित स्थान में ही करना चाहिये। इसके अनुचित प्रयोग तथा लोभ अथवा क्रोध आदि के कारण प्रयोग करनेवाला नरकमें जाता है। इसलिये अत्यन्त सावधान होकर इसका प्रयोग करना चाहिये।
बहिर्दिङ्मातृः, द्वारोवें गणपतिलक्ष्म्यौ, पार्श्वद्वये नन्दिगङ्गे महाकालयमुने, बामे ही प्रणवचतुर्थीनम:शब्दयोगेन पूजयेत् । नयस्य सर्वसहत्वात् सिद्धान्तदृशा नन्दिगङ्गे दक्षिणे पूज्ये, महाकालयमुने वामे । वामस्रोतस्येवं मेषास्यच्छागास्यौ अधिकौ दक्षिणवामयोः । भैरवस्त्रोतसि संहारप्रधानत्वाद् दक्षिणे महाकालयमुने वामे नन्दिगङ्गे ।
(नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)
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