श्रीतन्त्रालोक - डॉ. परमहंस मिश्र हिन्दी पुस्तक | Shri Tantralok - Dr Paramhansa Mishra Hindi Book PDF

 

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श्रीतन्त्रालोक हिन्दी पुस्तक के बारे में अधिक जानकारी | More details about Shri Tantralok Hindi Book



इस पुस्तक का नाम है : श्रीतन्त्रालोक | इस पुस्तक के लेखक/संपादक हैं : डॉ. परमहंस मिश्र | इस पुस्तक के प्रकाशक हैं : सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी | इस पुस्तक की पीडीऍफ़ फाइल का कुल आकार लगभग 132 MB है | इस पुस्तक में कुल 831 पृष्ठ हैं | आगे इस पेज पर "श्रीतन्त्रालोक" पुस्तक का डाउनलोड लिंक दिया गया है जहाँ से आप इसे मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं.


Name of the book is : Shri Tantralok | This book is authored by : Dr Paramhansa Mishra | This book is published by : Sampurnananda Sanskrit Vishwavidyalaya, Varanasi | PDF file of this book is of size 132 MB approximately. This book has a total of 831 pages. Download link of the book "Shri Tantralok" has been given further on this page from where you can download it for free.


पुस्तक के संपादकपुस्तक की श्रेणीपुस्तक का साइजकुल पृष्ठ
डॉ. परमहंस मिश्रतंत्र मंत्र, धार्मिक132 MB831



पुस्तक से : 

त्रिक विज्ञानका अप्रतिम महत्त्व है। सर्वेश्वर शिव को उपासना के भेद-प्रभेद को दृष्टिसे सारा शिव से संबन्धित शासन तन्त्र १०, १८ और ६४ भेदों वाला माना जाता है। सभीका सार त्रिक-तन्त्र में आ गया है।

 

चित्त का यह चित्र विचित्र चित्ररथोद्यान क्या है? तन्त्र कहता है कि चिति शक्ति जब चेतन भावसे नीचे उतर आती है, तो उसका सम्पर्क चेत्यवस्तुओं से होने लगता है। उसमें संकोचको अचेतनता का समावेश हो जाता है। तब वह चित्त बन जाती है।

 

वैष्णव, आईत, सोगत, सैद्धांतिक और श्रौत आदि मतवादोंके सन्दर्भ में लोक, अध्यात्म, अतिमार्ग, कर्म, ज्ञान और भक्तियोगके औपासनिक आयामों का मन्थन कर यह सिद्ध करनेका इसमें सफल प्रयास किया गया है कि संबोध के उत्कर्ष की दृष्टि महत्वपूर्ण है।

 

 

हम शाश्वत रूपसे वही थे। अब हम अपने शुद्ध 'अहम्' को अहन्ता से अलंकृत हो जाते हैं। अज्ञानका आवरण भग्न हो जाता है। ज्ञान का प्रकाश खिल उठता है। यह निश्चित सत्य है कि अज्ञान ही बन्धन है और ज्ञान ही मुक्ति है। इस ज्ञानको हम प्रत्यभिज्ञान भी कहते हैं। मायाके प्रतोप आत्मा के औन्मुख्य में ही अपनी पहचान हो पाती है। एक साधक सचमें जीवन्मुक्त हो जाता है।

 (नोट : उपरोक्त टेक्स्ट मशीनी टाइपिंग है, इसमें त्रुटियां संभव हैं, अतः इसे पुस्तक का हिस्सा न माना जाये.)


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